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________________ [ ७८ ] गली के रास्ता ढूंढियोंका स्थानक नाजाये तब ढूंढिये लोग वाजिनादि गीतयान जय ध्वनी सहित रथ यात्राका वर घोड़ा ( भगवान् की असवारी ) को अपने स्थानकके आमेसे जाने सबन्धी विरोध करें और बहुत कहने सुनने पर भी वहीं माने तो अपने हठवाद रूपी मतकदाग्रहके कारण अभिमानसे क्रोध कदाग्रह करके मार पीट लड़ाई दङ्गा भी करने लगजावे और बकवाद करने लगजावे कि हमारे स्थानकके जानेसे रथ यात्रा वर घोड़ा व जत्रादि गीत गान जय ध्वनी पूर्वक आज तक भी नहीं निकला तो आज कैसे जाने देखेंगे इस प्रकार क्लोससे कर्म बंधनका कारण जानकर बिवेकी बुद्धिमान् शांत स्वभावी आत्मार्थी भक्त जनोंने उस भगवान् को असवारीको वाजिनादि ध्वनि पूर्वक ढूढियोंके स्थानकके आगेके रस्तेके बदले दूसरे रस्ता से ले जावे तो क्या वह रथ यात्रा भगवान्‌को असवारी अठाई उच्छव पूजन कल्पित शास्त्र विरुद्ध हो सकता है सो तो कदापि नहीं तथापि कोई अज्ञानी मत कदाग्रही ढूंढक कहने लगे कि देखो उस दिन रथ यात्राका वर घोड़ा हमारे स्थानके आगे होकर नहीं जाने पाया इस लिये यह रथ यात्रादि सब झूठे ढङ्ग: हैं तो क्या वह अज्ञानी ढूंढकका कहना सत्य कदापि हो सकता है सो तो कभी नहीं और उस अज्ञानी ढू ढक़के अनुयायियोंकी अन्ध परम्पराका कथन भी सत्य नहीं हो सकता तथा रथ यात्रा अठाई उच्छव: जिन पूजन वगैरहका उपदेश और कक्तव्य कल्पित शास्त्र विरुद्ध नवीन प्ररूपणा नहीं ठहर सकती किन्तु शास्त्रानुसार बिनाका मुजब आत्म कल्याण कारक प्राचीन ही माननेमें जाते हैं तिस पर भी कोई कदाग्रही भारी कर्मा अपना झूठा हठवादको नहीं छोड़ तो उनके कर्मो का दोष परन्तु आत्मार्थी जन तो ऐसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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