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________________ [ ६९६ ] विरुद पाये और शुद्ध संयमियोंका अणहिलपुर पट्टणमें विहारखुला कराने वाले होनेसे इन्होंको सुविहित खरतर वसतिवासियोंके जन्मदाता अर्थात् संतती चलानेवाले कहने में आते हैं इस लिये श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराज खरतर सुविहित सन्ततीके जन्मदाता याने सुविहित खरतर समुदायकी परम्पराके चलाने वाले माने तो क्या पहिले सुविहित सन्तती तीर्थंकर महाराजोंसे नहीं थी ऐसी किसी तरह की शंका करनेका कोई भी कारण नहीं है । देखिये दुर्लभराजा जैसे बुद्धिमान् भी शुद्ध संयमियोंके दर्शन और उपदेशके अभावसे अपने नगर निवासी द्रव्य लिंगी शिथिलाचारी आचार्थ नाम धारक चैत्यवासियों को ही शुद्ध संयमी जैनी साधु मानता था परन्तु यह तो श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराजके संसगंसे ही सब भेद खुल गये तबसे ही तो दिनों दिन चैत्यवासियोका जोर घटता गया और शुद्ध संयमियोंकी समुदाय भी बढ़ती गई तथा देशान्तरों में विहार मी होने लगा तबसे विशेष रूपसे सुविहित सन्तती प्रसिद्धिको प्राप्त होती भई इससे इन महाराजको खरतर समुदाय की सन्तती चलाने वाले कहने में किसी तरह की विरुद्धता नहीं आ सकता है । और उपरोक्त पाठमें खरतर शब्दके अर्थ वाला ही सुविहित शब्द शास्त्र करने कथन किया परन्तु दुर्लभराजाकी सभा में चैत्यवासियोंके साथ शास्त्रार्थ होने सबन्धी खुलासा पूर्वक विस्तारसे नहीं लिखा जिसका कारण तो यही है कि प्रशस्तिके पाठ कथानक रूपकी बात विस्तारसे या संक्षिप्तसे भी प्रायः करके नहीं लिखी जाती किन्तु जिन जिन पूर्वाचार्यों का संबंध आवे उन्होंके विशेषण सहितसे नाम मात्र ही लिखने में आते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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