SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ६५ ] और श्रीमहाविदेह क्षेत्रकी अपेक्षासे तो अनादिसे मुधिहित खरतर वसतिवासी शुद्ध संयमियोंकी सन्तती शुरू है तथा इस भरत क्षेत्रकी इन्ही अवसर्पिणीकी अपेक्षासे श्रीऋषभदेव स्वामीजीसे शुरू होनेका कहो अथवा निज निज शासनकी अपेक्षासे शासन नायक श्रीवर्द्धमान स्वामीजीसे मुविहित खरतर वसतिवासी शुद्ध संयमियोंकी संतती शुरू समझो, परन्तु भगवान्के मोक्ष पधारे बाद अनुमान हजार वर्षे किचित् किंचित् किसी किसीने शिथिलाचार चैत्यवासकी प्रत्ति करी थी सो श्रीजिनेश्वर सूरिजी महाराजके समय एकरें तो अणहिलपुर पहण जैसे ग्राम नगरों में चैत्यवासी लोगोंने अपना पूरा जोर जमा लिया था, तथा अपने क्षेत्रों में शुद्ध संयमियोंका विहार राजाओंके हुक्म से बन्ध करा दिया और अपनी मति कल्पना मुजब इहलोक स्वार्थके लिये उत्सूत्रतासे और कुयुक्तियोंसे भव्यजीवोंको अपनी माया जालमें फँसाकर अविधि रूप उन्मार्गमें गेरकर अपने अपने गच्छकी अन्धपरम्पराके और दृष्टिरागके बन्धनसे भव्य जीवोंको खूब बांध लिये थे इस तरहका महान् अनर्थ करके अन्य शुद्ध संयमियोंके और विधि मार्गके द्वषी बना लिये थे तब श्रीजिनेश्वर सूरिजी महाराज अपने गुरु भाई श्री बुद्धिसागर सूरिजीके साथ उपरोक्त महान् अनर्थका निवारण करके शुद्ध संयमियोंका बिहार शुरू करनेके वास्ते अणहिलपुर पट्टणमें पधारे और राज्य सभाने चैत्यवासियोंसे शास्त्रार्थ करके उन्होंको पराजय किये उससे संयमियोंका विहार होने लगा और इन महाराज की समुदायमें उग्रविहारी शुद्धसंयमी शासन प्रभावकोंकी परम्परागत बात शिष्य प्रशियादिकी समुदायमें साधुओंकी वृद्धि हुई। सो चैत्यवासियोंको हटा करके राजासे खरतर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy