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________________ [ ६४२ ] कल्याणकके सत्य कथनका अनुकरण करके आपके बड़े पूर्वज श्रीकुलमण्डनसूरिजीने अपने बनाये ग्रन्थ में छ कल्याणक लिखे ऐसा आप मानो, या अपनी रुची मुजब छ कल्याणक लिखे मानो, वा अपने तपगच्छके पूर्वाचार्यों के माने मुजब परम्परागमसे लिखे मानों अथवा इस बातमें श्रीजिनवाणीको मान्य करके आगम प्रमाणानुसार छ कल्याणक लिखे मानो सो चाहे जिस तरहसे मान्य करो यह तो आपकी खुशीकी बात है परन्तु शास्त्रानुसार छ कल्याणक थे सोही आपके पूर्वजने लिखे है इसलिये श्रीकुलमण्डनसूरिजीके छ कल्याणक लिखने सम्बन्धी इस सत्य कथनको जो तुम्हारेमें भी शास्त्रप्रमाणानुसार सत्य बातको प्रमाण करनेरूप आत्मार्थीपना होतो युक्ति पूर्वक न्यायानुसार शास्त्र सम्मत छ कल्याणकोंकी सत्य बातको मान्य करनीही पड़ेगी, न्याय मुजब तो किसी तरहसे आप इस बातको कदापि निषेध नहीं कर सकते, तिस पर भी अपनी खोटी बुद्धिके उदयसे श्रीजिनवाणीरूप आगम वचनके छ कल्याणकोंको न मानकर उत्सूत्रोंकी कुयुक्तियोंके विकल्पोंसे इस सत्य कथनका भी निषेध करनेके लिये अभिनिवेशिकका कदाग्रहको न छोड़ते हुए श्रीजिनवल्लभसूरिजीका अनुकरणकाही बहाना लेकर श्रीकुलमण्डनमूरिजीको भी उसी मुजब दोषी मान बैठों, तो अपनी गुरु परम्परासे इनका नाम निकाल दो क्योंकि आपकी खोटी बुद्धिकी समझ मुजब तो आप श्रीजिनवल्लभसूरिजीको सब पूर्वाचार्यो को अज्ञानी ठहराने वाले तथा खंभा ठोककर जबराईसे उत्सूत्ररूप नवीन छ कल्याणककी प्ररूपणा करने वाले आप मानते हो और फिर भी आप इन महाराजकाही अनुकरण करनेवाले अपने पूर्वज श्रीकुलमण्डनसूरिजीको भी कहते हो इससे तो आपके पूर्वज भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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