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________________ का उपाय न देख तथा बार-बार उसकी रक्षा करने से तंग आ योगी ने उसे केशरी सिंह बना कर बन्य जन्तुओं से उसे भय मुक्त कर दिया। पर क्षुधा पीड़ित वह सिंह अन्य भक्ष्य न पाकर योगी पर आक्रमण करने का उपक्रम करने लगा। यह देख योगिराज की मोहनिद्रा टूट गई और उन्होंने उस सिंह को पुनः वही क्षुद्र चूहा बना दिया । हिंसक की रक्षा में दया कैसी ? दया तो हिंसक की हिंसा वृत्ति को उपदेश द्वारा छुड़ाने में है । हिंसा भाव तो संयती साधुवर्ग को छोड़ कर सभी में न्यूनाधिक परिमाण में पाया जाता है। क्षुद्र जीवों की हिंसावृत्ति उनकी निर्बलता के कारण दबी रहती है-पर उन्हें शक्तिशाली करते ही, चूहे को सिंह का बल देते ही वह हिंसा की ज्वाला धधक उठेगी। असंयती जोवों को पुष्ट करना तो हिंसा की तलवार को तेज करना है। यह तो प्रश्न ही नहीं उठता कि यह तलवार तुरन्त कामयाब होगी या कालान्तर में । इस पूरे विवेचन का निचोड़ स्वामीजी के सारगर्भित शब्दों में कहें तो यही है कि - "असंयती जीव को जीवनकामना में राग है, उसकी मृत्यु कामना में द्वेष और संसार समुद्र से उसके तिरने की वांछा में ही जैनधर्म का अस्तित्व है - " वास्तविक सुख क्या ? असंयती जीब की मरण या जीवन-कामना में जो राग और द्वेष का पुट है वह ऊपर दिखाया जा चुका है। अब हमें जीव की परम सुख प्राप्ति की पेष्टा, अथवा दूसरे शब्दों में, उसके संसार-समुद्र से निस्तार पाने के उपाय का दिग्दर्शन कराना है । दया की व्याख्या हमने प्राणी के दुःख निवारण या सुखवृद्धि की चेष्टा से की है। पर हमें सुख का स्वरूप समझना चाहिये । बिना इसके भ्रम का दमन नहीं हो सकता । यह तो स्वयम सिद्ध है कि प्राणो मात्र के हृदय में सुख की लालसा निहित है। पर यह सुख जिसके पीछे संसार के समय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034470
Book TitleAnukampa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Chopda
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1948
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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