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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार चोर जब अपनी माँ को सारा वृतांत सुनाता है तो मां तुरंत समझ जाती है कि वह तो अपरिग्रही निरासक्त पं. बनारसी दास का घर रहा होगा । अरे! जिनके पास संयम रत्न होता है वे उसके सिवाय अन्य किसी भौतिक रत्न की परवाह नहीं करते और यम-नियम में तय किए गए परिग्रह परिमाण के अनुरूप समता के साथ जीवन यापन करते हैं । अचौर्य धर्म यह भी कहता है कि बिना दिए हुए किसी वस्तु को ग्रहण करना अथवा पड़ी हुई वस्तु को उठा लेना भी चोरी है । ये संस्कार हमें अपने बच्चों को सिखाने चाहिए । जो वस्तु अपनी नहीं हैं वह भले ही कितनी ही कीमती क्यों न हो, ऐसी बिन मालिकी की वस्तु को प्राप्त करने का लालच कदापि अपने मन में नहीं लाना चाहिए। समझे जरा इस दृष्टांत के माध्यम से - एक छोटा सा बच्चा जिसे संभवतः धर्म के संस्कार नहीं मिले, उसे एक 500 की नोट पडी दिखती है । उसे ज्ञात होता है कि वह संभवतः उसी व्यक्ति की है जो उसे ढूंढ़ रहा है। लेकिन वह नोट उसकी नजर में न आ जाय इसलिए वह बच्चा उसे अपने पैर के नीचे दबाकर खड़ा हो जाता है ताकि उसके जाने पर वह उसे आसानी से उठा सके। हे भव्यजनो! यह कृत्य सही नहीं है । सोचो! उस व्यक्ति को कितना दुख होगा, उसके कितने अनिवार्य कार्य रुक सकते हैं, इसके कारण किसी के जीवन पर भी आँच आ सकती है जिसका नोट खोया है कदाचित् वह व्यक्ति अपनी बीमार माँ के लिए दवा लेने जा रहा हो अथवा वह अपने छोटे छोटे बच्चों वाले भूखे परिवार के लिए राशन का जुगाड़ करने जा रहा हो अथवा वह अपनी बेटी के इम्तिहान की फीस जमा करने जा रहा हो, क्या होगा तब? अरे! इससे कितना बड़ा गुनाह हो जाता है हमसे इस अचौर्य व्रत की आसाधना व असावधानी में। बस इतना सा ख्याल हमारे जेहन में समा जाय तो यह मृगतृष्णा मन से निकल जायेगी, हृदय निर्मल हो जायेगा और फिर सहजता से होगा जीवन में अचौर्य व्रत का पालन । इसलिए हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों में सत्य अहिंसा अचौर्य व्रत के श्रेष्ठ संस्कार डालें उससे उनकी नैतिकता को निरंतर दृढ़तर करते रहें । 43 धर्म का सेवन करो, मृदु बनो, मुलायम बनो 89 गुजरात के उप-मुख्यमंत्री नितिनभाई पटेल का आचार्यश्री सुनील सागरजी के दर्शनार्थ आगमन गांधीनगर में आचार्यश्री सुनील सागरजी महाराज के दर्शनार्थ गुजरात - मुख्यमंत्री श्री नितिनभाई पटेल पधारे। उनके सरल स्वाभाव को लेकर के उप
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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