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________________ 88 अणुव्रत सदाचार और शाकाहार इंसान के बनाए भगवान को लोग पूजते हैं किन्तु भगवान के बनाए इंसान को नहीं जो सही है उसे सभी स्वीकारें यह जरूरी नहीं और इसी प्रकार जिसे लोग स्वीकारते हों वह सही ही हो यह भी जरूरी नहीं। आचार्य भगवन् श्री सुनीलसागरजी महाराज ने आज की इस मानवीय बिडम्बना पर प्रातःकालीन सभा में श्रावकगणों को संबोधित करते हुए कहा कि इसके कारण समाज बँट रहा है, एक दूसरे के मध्य प्यार अपनापन और सहिष्णुता समाप्त हो रही है। उन्होंने कलाकार की व्यथा के माध्यम से आज की विकृत दशा के चित्र समाज के सामने रखे। एक बार एक कलाकार ने भगवान से पूछा कि भगवान आपके द्वारा बनाए गए मेरे जैसे इंसान हमेशा झगड़ते रहते हैं किन्तु वे मेरे द्वारा आपके जैसे बनाए गए मिट्टी के पुतलों व पत्थर की मूर्ति को पूजते हैं। यहाँ तक कि यदि अज्ञानता अथवा अन्य किसी कारणवश उस मूर्ति पर कोई चढ़ जाए तो इतना उपद्रव मचाते हैं कि उस निर्जीव मूर्ति के पीछे हजारों लाखों सजीवों का कत्ल करने पर भी आमादा हो जाते हैं। कैसी विचित्र दशा है इस संसार की? स्वरूप की समझ अर्थात् जीव तत्त्व के सम्यक् बोध के अभाव में प्रायः ऐसा होता है। कतिपय लोग यह समझ जाएं कि जो आत्मा मेरे अन्दर है वही दूसरों के अन्दर है तो न तो ये विकृतियां पैदा होंगी और न ही आए दिन उपद्रव खड़े होंगे। बताइए, ये हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई, बौद्ध, जैन आदि किसने बनाए? सच्चा धर्म तो मानव धर्म है जिसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः का संदेश समाया हुआ है। भगवान महावीर स्वामीजी कहते हैं कि हे आत्मार्थियो! आत्मा के भेद विज्ञान को समझो। धर्म के नाम पर उत्पन्न उन्माद धर्म नहीं है। धर्म में विकल्प नहीं होते। धर्म तो वह है जिसे धारण किया जा सके और जो आत्म विशुद्धि के सरल मार्ग पर ले जा सके। मुनि महाराज का दृष्टि फलक विस्तृत होता है वे अहिंसा महाव्रत का दृढता के साथ पालन करते हुए करुणा भाव के साथ एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों की रक्षा करते हैं, सत्य, अचौर्य और ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह मुनिजन के उत्तम चरित्र व आदर्श आचरण को अपनाते हैं। कई उत्कृष्ट श्रावकों में भी इन व्रतों के पालन की ईमानदारीपूर्ण निष्ठा देखने को मिलती है। ऐसा ही एक प्रसंग पं. बनारसी दास जी के जीवन का है कि वे अपने घर चोरी करने आए चोर के द्वारा चुराए गये श्रेष्ठ रत्नों की गठरी को बांधकर चोर के सिर पर रखवाने में मदद करते हैं ताकि वह उस गठरी को आसानी से उठाकर अपने घर ले जा सकें। इस अप्रत्याशित मदद से प्रसन्न
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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