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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार संवत्सरी के स्वर्णिम दिवस पर कठोर तपस्वी, साधना मूर्ति, ध्यान योगी, इन्द्रिय-जय पथ के सच्चे पुरुषार्थी साधक आचार्य भगवन् श्री सुनीलसागरजी महाराज की चरण वंदना करते हुए धन्यता का अनुभव कर रहा हूँ। चातुर्मास आत्मा साधना आत्म शुद्धि का अवसर हमें जीवन में प्रदान करता है। धर्म तो एक जीवनशैली है जो नदी रूपी दो किनारों को संयम और व्रत रूपी किनारों में मर्यादा में बांधकर जीवन को स्व-पर के लिए उपयोगी बनाती है। 49 अर्थ की बात करने वाले महर्षि चाणक्य अर्थ को मात्र धन के संदर्भ में नहीं देखते अपितु समाज के प्रति निष्ठा और समर्पण की सार्थकता के रूप में नीति नियामकों के समक्ष रखते हैं। चाणक्यनीति राजधर्म की निष्ठा और नैतिकता का प्रतिरूप है जो वैयक्ति चिंतन की जगह सामुदायिक हित - चिंतन को प्राधान्य देती है और वसुधैव कुटुंबकम् की भावना का अनुसरण करती है । आचार्यश्री सुनील सागरजी महाराज ने मनोजभाई को आशीर्वाद देते हुए कहा कि वे जैन नहीं हैं किन्तु विचार उच्च हैं, बाहरी दुनियाँ में व्यस्त रहते हुए शाकाहार पालन के प्रति कोई कोर कसर नहीं रखते और अपने कार्यक्षेत्र के माध्यम से श्रेष्ठ संस्कृति का प्रसार करने में लगे हुए हैं। चाणक्य और चंद्रगुप्त के ऐतिहासिक प्रसंग को लेकर कहा कि चाणक्य की देश के प्रति निष्ठा और समर्पण अद्भुत है जिसने एक साधारण से बालक को शिक्षित प्रशिक्षित कर नीतिसम्मत सम्राट चंद्रगुप्त बना दिया और स्वयं भी जीवन के अंत समय में संथारा सल्लेखना लेकर शांति परिणामों के साथ नश्वर शरीर का त्याग कर लिया । गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास का उदाहरण देते हुए बताया कि जब वे सम्राट नहीं बने थे, दुश्मन उनका पीछा कर रहे थे, उन्होंने तालाब देखकर चन्द्रगुप्त को जोर से तालाब में धक्का मार दिया और स्वयं बड़ी ही चतुराई से पहाड़ी की ओट में छिपकर बच गए। बाद में उन्होंने चन्द्रगुप्त से पूंछा कि जब मैंने तुम्हें तालाब में धक्का दिया तब तुम्हारे मन में क्या विचार आया? चन्द्रगुप्त ने बड़ी ही विनय से जबाव दिया कि नहीं गुरुदेव, आप तो मुझे बनाने वाले हो, आपके द्वारा मेरा कभी कोई अहित हो ही नहीं सकता, ऐसी मेरी अकाट्य श्रद्धा है। धन्य है गुरु-शिष्य के पावन रिश्ते के विश्वास की गहराई । आचार्य भगवन् ने कहा कि उत्तम ब्रह्मचर्य का पालन तो मुनिराज ही करते हैं किन्तु श्रावक ब्रह्मचर्याणुव्रत को अपनाकर उन विकारी और विलासी भावों से बच सकता है जो समाज में गंदकी और अपराधों को जन्म देते हैं । जो त्यागी उत्तम क्षमा आदि 9 धर्मों की निष्ठापूर्वक आराधना करता है वही शीलरत्न ब्रह्मचर्य धर्म को धारण कर सकता है और स्वयं के तथा समाज के संकटो का निवारण कर सकता है। इस संसार में संयोग ही दुख का मूल है। श्रावक एकदेश ब्रह्मचर्य का पालन करके आत्मा के गुणों को प्रकट कर
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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