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________________ 48 अणुव्रत सदाचार और शाकाहार परवाह किए बिना उसे करार के बंधन से मुक्त कर दिया। यदि उनकी आसक्ति मात्र पैसे के प्रति होती तो वे उस लाचार मनुष्य से प्रेम नहीं कर पाते। इसी तरह एक शेठ ने जब यह महसूस कर लिया कि धन सर्वस्व नहीं जिसे उसने पैसे न चुकाने का कारण मारने की धमकी दी थी वह गुरुमुख से आकिंचन के रहस्य को जानकर उसके पास जाकर बोला कि जब तुम पर हो जाएं तब दे देना और फिर दोनों की आंखों से अश्रुधार बह निकली। सचमुच आकिंचन्य धर्म कितना महान है। आकिंचन्य धर्म से सीखो कि मेरा कुछ नहीं। तेरा मेरा की गिनती तो छोटी बुद्धि वाले करते हैं। या तो मेरी एक धजीर भी नहीं, नहीं तो सभी कुछ मेरा है ऐसा भाव रखो। महावीर प्रभु की वाणी को आचार्य कुन्द-कुन्द ने कहा है कि यह देह, यह वाणी कुछ भी हमारा नहीं है। हमारा चिन्तन ही हमारा है। ज्ञानी शरीर से ममत्व का भेद विज्ञान कर लेता है तो वह आकिंचन को प्राप्त कर लेता है। इस शरीर से जितना अच्छा काम कर लेता है वह कर लो। भगवान मंदिर में ही नहीं, सभी जगह हैं यदि यह समझ आत्मसात हो जाय तो दुनियाँ के झगड़े खत्म हो जायेंगे। गुणभद्र आचार्यने 1000 साल पहले लिखा कि किसी भी वस्तु के पीछे भागो मत। मैं कुछ नहीं हूँ मेरा कुछ नहीं है। गुरु भगवान कभी अहंकार नहीं करते। फिर हम क्यों बारबार समाज में अहं के चलते दूसरे को नीचा दिखाते है। इस अच्छे विचार से अकिंचन का पालन करके मोक्षमार्ग में जा सकते हैं। यदि हम अकिंचन होकर तप करते हैं तो कई सारी सिद्धि तो अपने आप हो जाती हैं। यह ज्ञान स्वरूप जैन का ही नहीं अपितु सभी प्राणियों का है इस स्वरूप पर अपनत्व आए तो व्यक्ति महान बन सकता है। 24 श्रावक एकदेश ब्रह्मचर्य का पालन करके आत्मा के गुणों को प्रकट कर सकता है दसलक्षण पर्व के अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म, 12वें तीर्थकर वासुपूज्य स्वामी के निर्वाण एवं संवत्सरी के दिना चाणक्य फेम पद्मश्री मनोज जोषी ने गुरुवर आचार्यश्री सुनीलसागरजी के दर्शनार्थ पधार कर आशीर्वाद प्राप्त किया। चाणक्य का नैतिक प्रेरणास्पद किरदार निभाने वाले मनोजभाई जोषी जो वास्तविक जीवन में सांस्कृतिक मूल्यों एवं सदगुरुओं के प्रति निष्ठा और समर्पण का भाव रखते हैं, उन्होंने कहा आज दशलक्षणी के अंतिम ब्रह्मचर्य धर्म, 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य स्वामी के निर्वाण तथा दिगंबर जैन समुदाय की
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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