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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार सकता है। बड़े से बड़ा जीतने वाला पहलवान भी प्रायः नारी, विकारी, विलासी शक्ति के आगे हार जाता है। ब्रह्मचर्याणुव्रत वीर्य-बल का रक्षण करते हुए ऊर्जा का संचार करता है तथा व्यक्ति को कांतिमान बनाता है। तपस्वी सम्राट पूज्य आचार्यश्री सन्मतिसागरजी का जीवन उत्तम ब्रह्मचर्य से युक्त था इसलिए उनके व्यक्तित्व की एक विशिष्ट आभा थी चेहरे पर कांति थी, सम्यकत्व की दृढ़ता थी और वाणी में अद्भुत और तथा परिणाम सरल और निर्मल जो उनके उत्कृष्ट चारित्र की दुहाई देते थे। प्रभु वासुपूज्य भगवान जिनका आज मोक्ष कल्याणक है वे बालब्रह्मचारी थे वे राजपाट को ग्रहण करने की बजाय वैराग्य के पथ पर चलकर मोक्ष को प्राप्त हुए। संघस्थ मुनिश्री सुधीरसागरजी महाराज की आज दशलक्षणी दरम्यान 10वें उपवास की कठोर साधना है। 70 से अधिक श्रावकों की भी उपवास साधना चल रही है यदि इसका योग करें तो लगभग 1000 व्रत उपवास हो जाते हैं। इससे राष्ट्र व समाज के हित में पावन व पवित्र वातावरण का निर्माण हो रहा है। आज के प्रवचन में मुनिश्री ने कहा कि यह जीव कब से तीव्र निद्रा में है, आँखे खुली हैं फिर भी नहीं देख रहा है। इसको देखने के लिए भेद विज्ञान करना पड़ेगा। शरीर की इन्द्रियां तो नश्वर पुद्गल की देन हैं, मोतिया आ गया तो आंख काम करना बंद कर देती है, पर्दा फट गया तो कान काम करना बंद कर देते हैं। एक दृष्टांत देकर उहोंने संसारी जीव की दशा को समझाया एक राजा जो प्रजा के हितों को अनदेखी करता है, जागता हुआ भी नींद मे होता है। एक द्वारपाल उसे सचेत करने की मंशा से ड्यूटी पर आधा घंटे के लिए सो जाता है उसे 7 कोड़े की सजा होती है वह सजा झेलता हँसता है। राजा उसकी सजा बढ़ा देता है वह और हंसता है। राजा उससे हँसने का कारण पूछता है। वह कहता है राजन, मैं आधा घंटे के लिए सोया तो मुझे 7 कोड़ो की सजा मिली और आप तो कब से सो रहे अपने कर्तव्य पथ में। राजा के होश ठिकाने आ जाते हैं। आज का दिन शीलव्रत धारण करने तथा आत्म संकल्प को दृढ़ करने का दिन है, विषय विकारों से विरक्ति का दिन है। भरत चक्रवर्ती राजपाट और भोगों के बीच रहते हुए सदैव ब्रह्म में लीन रहने वाले गृहस्थ साधक थे। उनसे भी सीख लेकर इस मायावी संसार से उपयोग बदलकर आत्मचिन्तन में लीन होकर ब्रह्मचर्याणुव्रत को सार्थक करने की जरूरत है। आचार्य गुरुवर और मुनिसंघ की पावन निश्रा में समाज के सभी लोगों ने प्रतिक्रमण के पश्चात प्रेम से परस्पर मिच्छामि दुकडम करते हुए अपनी जानी अनजानी भूलों के लिए क्षमा याचना की और निर्मल परिणामों के साथ सभी को क्षमा किया।
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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