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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 47 भी मालिकी का भाव नहीं रखता। ऐसे में यदि उस वस्तु या पदार्थ का क्षय नुकसान आदि होता है उसकी टीस उसके मन में सदैव नहीं रहती। श्रीकृष्ण गीता में स्थितिप्रज्ञ रहने का उपदेश देते हैं उसमें और अधिक दृढ़ होने की वकालत करते हैं ताकि किसी भी विषम परिस्थिति से वह प्रभावित न हो। भेद विज्ञान से ज्ञानी जन जान लेते हैं कि हम क्या साथ लाए थे और क्या साथ लेकर जायेंगे। जब यह शरीर भी अपना नहीं फिर किसी और वस्तु से ममत्व कैसा। यह ममत्व इतना खराब है कि एक बार लग जाने पर साधु संतो की शांति छीन लेता है। गुरुवर एक दृष्टांत के माध्यम से समझाते हैं एक साधु को रास्ते में सोने का कंगन पड़ा मिल गया उन्होंने उसे उठा लिया। अब वे हर विकट लगने वाली परिस्थिति में चेले को कहते "ध्यान रखना"। चेला असमंजस में कि हरफनमौला गुरुजी को क्या हो गया कैसी शल्य, कैसी बीमारी लग गई कि संध्या में धर्म ध्यान की जगह संसारी की तरह व्यर्थ का प्रलाप करते हैं कि जागते रहना। एक दिन गुरु के बाहर जाने पर चेले ने उस पोटली को खोला, सोने का कड़ा देखकर सारा माजरा समझ में आ गया। बिना पल गंवाए उसने वह कड़ा पास के कुएं में डाल दिया और उतने ही वजन का पत्थर अंदर रख दिया। फिर गुरुजी के वही प्रलाप करने पर चेला बोला कि डर तो गुरुजी मैं कुएं में डाल आया। अब आप निश्चिंत होकर संध्या साधना करो। सारी हकीकत से वाकिफ होने पर गुरुजी बहुत खुश हुए। स्थिति प्रज्ञ रहकर कठोर तपस्या करते रहने से आकिंचन्य का भाव सुदृढ़ होता है। विधिपूर्वक यदि कोई जैन शासन की तपस्या करता है तो उसके शरीर को कुछ नहीं होता, किसी भी तरह उसका तप पूरा हो जाता है, इससे देश की सुख शांति बढ़ती है, परिवार और समाज का आनंद बढ़ता है। कहते हैं कि तपस्या से तो देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। यदि सामर्थय है तो दान करो। कुछ लोगों ने सादा भोजन वाली भोजनशालाएं खोल रखी हैं, किसी ने प्याऊ खोल रखी है किसी ने भूखे को देखा तो उसे बुलाकर दे दिया दो रोटी का आहार दान, कोई बीमार है तो दो औषधि दान, जरूरतमंद को सामूहिक व व्यक्तिगत रूप से समाज मे विद्या सामग्री का दान दो, यदि ज्ञान है तो उपदेश का दान दो ताकि समाज के व्यसन छूटे। अहिंसक बनो इससे बड़ा कोई अभय दान नहीं। हिंसक व्यक्ति से सभी डरते हैं। आप किसी से नहीं डरते यह ठीक है लेकिन एक गण और पैदा करो कि तुमसे कोई न डरे। यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। आप से सभी प्रेम करें खौफ नहीं खाएं। पशु पक्षियों पर दया करो उनको समझो। श्रीमद् राजचंद्र के गृहस्थ जीवन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि किस प्रकार राजचंद्रजी प्रेम के साथ सामने वाले व्यापारी को करुणा के साथ अपने नुकसान की
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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