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________________ स्वात्मानुभूति आत्मा के किस प्रदेश में ? 69 १३ स्वात्मानुभूति आत्मा के किस प्रदेश में ? प्रश्न :- स्वात्मानुभूति रूप अनुभव अर्थात् शुद्धात्मा के साथ 'एकत्व भाव' यानि अतीन्द्रिय ज्ञान शरीर के किस भाग में होता है ? उत्तर :- उत्तर रूप से पंचाध्यायी पूर्वार्द्ध के छह श्लोकों में बतलाया है कि हृदय कमल में रहे हुए भाव मन और द्रव्य मन में। वे श्लोक : श्लोक ७११-७१२ : अन्वयार्थ :- 'इस शुद्धात्मानुभूति के समय में स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इस प्रकार पाँचों इन्द्रियाँ उपयोगी नहीं मानी हैं परन्तु वहाँ केवल मन ही उपयोगी मानने में आया है तथा यहाँ निश्चय से अपने अर्थ की अपेक्षा से नो इन्द्रिय है जिसका दूसरा नाम ऐसा वह मन, द्रव्य मन तथा भाव मन इस प्रकार दो प्रकार का है। ' श्लोक ७१३ : अन्वयार्थ :- 'हृदय कमल में घनांगुल के असंख्यातवें भाग मात्र है प्रमाण जिसका, ऐसा वह द्रव्य मन होता है, वह अचेतन होने पर भी ज्ञान के विषय को ग्रहण करते समय भाव मन को सहायता करने में समर्थ होता है, अर्थात् द्रव्य मन, भाव मन को सहायता करता है।' किसी को लगे कि मुझे अनुभव हृदय के भाग में ही होता है, परन्तु ऐसा एकान्त से नहीं है क्योंकि द्रव्य मन हृदय कमल में भले हो, परन्तु भाव मन रूप आत्मा का क्षयोपशम है। वह आत्मा के सर्व प्रदेशों में होने से अनुभूति सम्पूर्ण आत्मा की होती है और वह सर्व प्रदेश में होती है। श्लोक ७१४ : अन्वयार्थ :- 'स्व आवरण के क्रमपूर्वक उदीयाभावीक्षय से ही लब्धि और उपयोग सहित जो केवल आत्म उपयोग रूप ही आत्मा का परिणाम है, वह भाव मन है।' अर्थात् भाव मन आत्मा के सर्व प्रदेशों में है। श्लोक ७१५-७१६ : अन्वयार्थ :- 'स्पर्श, रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र ये पाँचों इन्द्रियाँ मूर्तिक पदार्थ को जाननेवाली हैं तथा मन, मूर्तिक और अमूर्तिक दोनों पदार्थों को जाननेवाला है। इसलिये यहाँ यह कथन निर्दोष है कि स्वात्मा ग्रहण में निश्चय से मन ही उपयोगी है, परन्तु इतना विशेष है कि विशिष्ट दशा में (अतीन्द्रियज्ञान में = स्वात्मानुभूति में) वह मन स्वयं ही ज्ञान रूप हो जाता है।' यहाँ समझना यह है कि जो भाव मन कहा है, वह आत्मा के ज्ञान का ही क्षयोपशम रूप एकउपयोग विशेष है, अन्य कुछ नहीं, अजीव द्रव्य नहीं है। वह भाव मन आत्मा का विशिष्ट क्षयोपशम होने से आत्मा के सर्व प्रदेशों में होता है, परन्तु द्रव्य मन हृदय कमल में होने से उस अपेक्षा से स्वात्मानुभूति रूप अनुभव हृदय कमल में होता है - ऐसा कहा जाता है।
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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