SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचाध्यायी पूर्वार्द्ध की वस्तु व्यवस्था दर्शाते श्लोक श्लोक ४१२ : अन्वयार्थ :- 'सत् और परिणाम की द्वैतता जल और उसकी तरंगों की भाँति अभिन्न तथा भिन्न भी है, क्योंकि जल तथा तरंगों में से जिस समय तरंगों की अपेक्षा से विचार किया जाता है, उस समय तरंगें उदित होती हैं तथा विलीन होती हैं, इसलिये वे जल से कथंचित् भिन्न हैं तथा जिस समय जल की अपेक्षा से विचार किया जाता है, उस समय वे तरंगें उदयमान तथा विलयमान ही नहीं होती परन्तु केवल जल ही जल प्रतीतिमान होता है; इसलिये वे जल से कथंचित् अभिन्न भी हैं। इस प्रकार सत् (ध्रुव) और परिणाम भी कथंचित् भिन्न तथा कथंचित् अभिन्न हैं।' यही विधि है त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा की प्राप्ति की, दूसरी नहीं। इससे अन्यथा मानने से मिथ्यात्व का दोष आता है। अब आगे घट और मृत्तिका का दृष्टान्त बताते हैं। 55 श्लोक ४१३ : अन्वयार्थ :- ‘घट और मृत्तिका के द्वैत की भाँति यह सत् और परिणाम का द्वैत, द्वैत होने पर भी अद्वैत है, क्योंकि केवल मिट्टीपने के रूप से नित्य है, तथा केवल घटपने के रूप से अनित्य है।' श्लोक ४१४ : अन्वयार्थ :- 'सत् के विषय में प्रत्यभिज्ञान प्रमाण प्राप्त होने से सत् नित्य है जैसे कि ‘यह वही है’ तथा नियम से 'यह वह नहीं' इस प्रतीति से सत् नित्य नहीं अर्थात् अनित्य है।' श्लोक ५९१ : भावार्थ :- 'नयों की परस्पर सापेक्षता वह नयों के अन्यथा रूप से न होनेवाले अविनाभाव की द्योतक है क्योंकि जिसके बिना जिसकी सिद्धि न हो उसे अविनाभावी कहते हैं। सामान्य के बिना विशेष की तथा विशेष के बिना सामान्य की सिद्धि नहीं हो सकती, इसलिये सामान्य को विषय करने वाला जो द्रव्यार्थिक नय है तथा विशेष को विषय करने वाला जो पर्यायार्थिक नय है, उन दोनों में परस्पर सापेक्षता है । ' हमने यहाँ द्रव्य-गुण-पर्याययुक्त सत् स्वरूप वस्तु अर्थात् उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य स्वरूप सत् रूप द्रव्य की व्यवस्था पूर्णत: समझायी है। उसे समझकर आशा है, सभी व्यक्ति सम्यग्दर्शन की विधि और उसके लिये सम्यग्दर्शन के विषय (दृष्टि के विषय) पर थोड़ा विचार करेंगे और उसका शास्त्रीय आधार देखेंगे।
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy