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________________ सम्यग्दर्शन की विधि श्लोक २३०-२३१ : अन्वयार्थ :- ‘ध्रौव्य और उत्पाद-व्यय परस्पर विरोधी हैं, यह बात ठीक है, परन्तु यदि निश्चय से इन तीनों में क्षण भेद अर्थात् भिन्न-भिन्न समय हो तो अथवा निश्चय से सत् स्वयं ही नाश होता हो (अर्थात् सत् परिवर्तित न होकर नाश होता हो), तथा सत् स्वयं ही उत्पन्न होता हो (अर्थात् सत् परिवर्तित न होकर नाश होकर नया उत्पन्न होता हो) तो परस्पर विरुद्ध कथन होता परन्तु इन उत्पादादिक तीनों का क्षण भेद अथवा स्वयं सत् का ही नाश पाना या उत्पन्न होना वह किसी भी जगह, किसी भी हेतु से कुछ भी, किसी का भी, किसी भी प्रकार से नहीं होता, क्योंकि इस जगह उसका दृष्टान्त भी नहीं मिलने से, उसके साधक प्रमाण का अभाव है।' श्लोक २३८ : अन्वयार्थ :- 'न्याय बल से यह सिद्ध हुआ कि ये तीनों (उत्पाद-व्ययध्रौव्य) एक कालवर्ती है, क्योंकि वृक्षपन जो है वही अंकुर रूप से उत्पन्न और बीज रूप से नष्ट होनेवाला है।' अर्थात् पूर्ण द्रव्य ही एक पर्याय से नष्ट होकर दूसरी पर्याय रूप परिवर्तित होता रहता है और इसीलिये ही उसे ध्रुव कहा जाता है, उसकी पूर्व पर्याय को व्यय रूप और वर्तमान पर्याय को उत्पाद रूप कहा जाता है, अर्थात् उस द्रव्य में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप कोई अलग अंश नहीं, मात्र वस्तु व्यवस्था समझाने के लिये ऐसे भेद करके बतलाया है कि - जो भी द्रव्य है, वह द्रवता है अर्थात् परिणमता है, अर्थात् परिवर्तित होता रहता है और वह परिवर्तित होते हुए द्रव्य को ध्रुव कहा जाता है। जबकि उसके परिणाम को - अवस्था को पर्याय (उत्पाद-व्यय) रूप कहा जाता है। श्लोक २४३ : अन्वयार्थ :- ‘प्रकृत कथन में ऐसा मानने में आया है कि सत् को किसी अन्य (पूर्व) पर्याय से विनाश तथा किसी अन्य (वर्तमान) पर्याय से उत्पाद तथा उन दोनों से भिन्न किसी सदृश पर्याय से (द्रव्य सामान्य रूप कि जिसकी दोनों पर्यायें बनी हैं और जो सामान्य रूप होने से वैसा का वैसा ही उत्पन्न होता है इसलिये उसे सदश पर्याय रूप = परम पारिणामिक भाव रूप कहा जाता है) ध्रौव्य होता है।' अब इसका ही उदाहरण बतलाते हैं श्लोक २४४ : अन्वयार्थ :- 'यहाँ उदाहरण वृक्ष की भाँति है कि जैसे वह वृक्ष सत्तात्मक अंकुर रूप से स्वयं ही (अर्थात् वृक्ष स्वयं ही अर्थात् द्रव्य स्वयं ही) उत्पन्न है, बीज रूप से नष्ट है (पूर्व पर्याय से नष्ट कहा जाता है) तथा दोनों अवस्थाओं में वृक्षपने से ध्रौव्य (अर्थात् समझना
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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