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________________ दृष्टि भेद से भेद रूप-पर्याय रूप ही ज्ञात होता है, उसे ही पर्याय दृष्टि कहा जाता है और उस समय उस वर्तमान पर्याय में ही पूर्ण द्रव्य छिपा हुआ है। 25 इसलिये यदि ऐसा कहा जाये कि वर्तमान पर्याय का सम्यग्दर्शन के विषय में समावेश नहीं, तो वहाँ समझना पड़ेगा कि किसी भी द्रव्य की वर्तमान पर्याय का लोप होते ही, पूर्ण द्रव्य का ही लोप हो जायेगा, वहाँ वस्तु का ही अभाव हो जायेगा ; इसलिये दृष्टि के विषय में (सम्यग्दर्शन के विषय में) वर्तमान पर्याय का अभाव न करके, मात्र उसमें रही हुई अशुद्धि को (विभाव भाव को) गौण करना ठीक है; जो हम आगे स्पष्ट करेंगे। उसी पूर्ण वस्तु को यदि द्रव्य दृष्टि से देखें तो वह सम्पूर्ण वस्तु मात्र द्रव्य रूप ही - ध्रुव रूप ही-अपरिणामी रूप ही ज्ञात होती है, वहाँ पर्याय ज्ञात ही नहीं होती क्योंकि तब पर्याय उस द्रव्य में अन्तर्भूत हो जाती है। पर्याय गौण हो जाती है और पूर्ण वस्तु ध्रुव रूप- द्रव्य रूप ही ज्ञात होती है इसीलिये ही द्रव्य दृष्टि कार्यकारी है यह बात हम आगे विस्तार से बतलायेंगे। यहाँ बतलाये अनुसार द्रव्य-गुण- पर्याय और उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य रूप वस्तु व्यवस्था सम्यक् रूप से न समझ में आयी हो अथवा तो विपरीत रूप से धारणा हुई हो तो, सर्व प्रथम उसे सम्यक् रूप से समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि उसके बिना सम्यग्दर्शन का विषय (दृष्टि का विषय) समझना अशक्य ही है। इसलिये अब हम यही भाव शास्त्र के आधार से भी दृढ़ करेंगे।
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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