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________________ 226 सम्यग्दर्शन की विधि छूटना आवश्यक है। इस कारण से सारा पुरुषार्थ उन के प्रति वैराग्य हो, इसके लिये ही लगाना आवश्यक है। इसके लिए सद्वाचन और सच्ची समझ भी आवश्यक है। - तुम्हें क्या रुचता है? यह है आत्म प्राप्ति का बैरोमीटर-थर्मामीटर। इस प्रश्न पर विचार करना। जब तक उत्तर में कोई भी सांसारिक इच्छा/आकांक्षा हो, तब तक अपनी गति संसार की ओर समझना और जब उत्तर एकमात्र आत्म प्राप्ति, ऐसा हो तो समझना कि आपके संसार का किनारा बहुत नज़दीक़ आ गया है। इसलिये उसके लिये पुरुषार्थ बढ़ाना। तुम्हें क्या रुचता है? यह है तुम्हारी भक्ति का बैरोमीटर-थर्मामीटर अर्थात् भक्ति मार्ग की व्याख्या। जो आपको रुचता है, उस ओर आपकी सहज भक्ति समझना। भक्ति मार्ग अर्थात् चापलूसी अथवा व्यक्तिगत रूप भक्ति नहीं समझना परन्तु जो आपको रुचता है अर्थात् जिसमें आपकी रुचि है, उसी ओर आपकी पूरी शक्ति कार्य करती है। इसलिये जिसे आत्मा की रुचि जगी है और मात्र उसका ही विचार आता है, उस की प्राप्ति के ही उपाय विचारता है तो समझना कि अपनी भक्ति यथार्थ है। अर्थात् मैं सच्चे भक्ति मार्ग में हूँ; इसलिये जब तक तुम्हें क्या रुचता है, इसके उत्तर में कोई भी सांसारिक इच्छा/ आकांक्षा हो अथवा कोई व्यक्ति हो, तब तक अपनी भक्ति संसार की ओर ही समझना और जब उत्तर एकमात्र आत्म प्राप्ति हो तो समझना कि आपके संसार का किनारा बहुत नज़दीक़ आ गया है। इसलिये भक्ति अर्थात् संवेग और निर्वेद सहित वैराग्य ही आत्म प्राप्ति के लिए कार्यकारी है। अभय दान, ज्ञान दान, अन्न दान, धन दान, औषधि दान में अभय दान अति श्रेष्ठ है। इसलिये सबको प्रतिदिन जीवन में जयणा/यत्न (प्रत्येक काम में कम से कम जीव हिंसा हो वैसी सावधानी) रखना अत्यन्त आवश्यक है। प्रश्न :- धन पुण्य से प्राप्त होता है या मेहनत से? उत्तर :- धन की प्राप्ति में पुण्य का योगदान अधिक है और मेहनत अर्थात् पुरुषार्थ का योगदान न्यून है। क्योंकि जिसका जन्म धनी कुटुम्ब में होता है, उसे कुछ भी प्रयत्न बिना ही धन प्राप्त होता है। और कुछ व्यक्ति व्यापार में बहुत मेहनत करने पर भी धन गँवाते दिखायी देते हैं। धन कमाने के लिए प्रयत्न आवश्यक है परन्तु कितना ? बहुत लोगों को बहुत अल्प प्रयत्न में अधिक धन प्राप्त होता दिखता है, जबकि किसी को बहुत प्रयत्न
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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