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________________ 12 ३ सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन की विधि सम्यग्दर्शन मोक्षमार्ग का द्वार है । निश्चय सम्यग्दर्शन के बिना मोक्षमार्ग में प्रवेश ही नहीं होता और मोक्षमार्ग में प्रवेश के बिना अव्याबाध सुख का मार्ग ही साध्य नहीं होता । मोक्षमार्ग में प्रवेश और बाद के पुरुषार्थ से ही सिद्धत्व रूप फल मिलता है, अन्यथा नहीं। सम्यग्दर्शन के बिना भव भ्रमण भी नहीं कटता, क्योंकि सम्यग्दर्शन होने के बाद ही जीव अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल से अधिक संसार में नहीं रहता, वह अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल में अवश्य सिद्धत्व को प्राप्त करता ही है जो कि सत्-चित्-आनन्द स्वरूप शाश्वत् है। इसलिये समझ में आता है कि इस मानव भव में यदि कुछ भी करने योग्य हो तो वह एकमात्र निश्चय सम्यग्दर्शन ही सर्व प्रथम प्राप्त करने योग्य है जिससे स्वयं को मोक्षमार्ग में प्रवेश मिले और पुरुषार्थ प्रस्फुटित होने पर आगे सिद्ध पद की प्राप्ति हो । यहाँ यह समझना आवश्यक है कि जो सच्चे देव-गुरु-धर्म के प्रति श्रद्धा रूप अथवा नौ तत्त्व की श्रद्धा रूप सम्यग्दर्शन है, वह तो मात्र व्यावहारिक (उपचार रूप) सम्यग्दर्शन भी हो सकता है जो कि मोक्षमार्ग में प्रवेश के लिये कार्यकारी नहीं माना जाता, क्योंकि निश्चय नय के मत से जो एक को अर्थात् आत्मा को जानता है वही सर्व को अर्थात् सात / नौ तत्त्वों को और सच्चे देव-गुरु-शास्त्र को जानता है। एक आत्मा को जानने से ही वह जीव सच्चे देव तत्त्व का आंशिक अनुभव करता है, इससे वह सच्चे देव को अन्तर से पहचानता है और सच्चे देव को जानते ही अर्थात् श्रद्धा होते ही वह जीव यह देव बनने के मार्ग पर चलते सच्चे गुरु को भी अन्तर से पहचानता है और साथ ही साथ वह जीव देव बनने का मार्ग बतलानेवाले सच्चे शास्त्र को भी पहचानता है। इस प्रकार स्वानुभूति (स्व की अनुभूति) सहित का सम्यग्दर्शन अर्थात् भेद ज्ञान सहित का सम्यग्दर्शन ही निश्चय सम्यग्दर्शन कहलाता है और उसके बिना मोक्षमार्ग में प्रवेश भी शक्य नहीं है। यहाँ बतलाये गये सम्यग्दर्शन को निश्चय सम्यग्दर्शन ही समझना। जैन समाज में सम्यग्दर्शन के ऊपर बहुत कुछ लिखा गया है, परन्तु निश्चय सम्यग्दर्शन के दुर्लभपने से उसकी अनुभव सिद्ध रीति कम देखने में आती है। सम्यग्दर्शन के लिये अनेक सम्प्रदायों में हमने अनेक मुमुक्षु जीवों को गम्भीरता से प्रयास करते देखा है। लेकिन उनको उचित मार्गदर्शन न मिलने से वे जीव कुछ काल तक भरपूर प्रयास करने के बाद हताश हो जाते हैं। तब ऐसे लोग
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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