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सम्यग्दर्शन के लिये योग्यता
३. आलोचक को और जिसकी आलोचना हो रही है, उन दोनों को अपने पाप कर्मों की सफ़ाई में मदद करनेवाले उपकारी मानकर, उनके लिये मन में धन्यवाद चिन्तवन करना। इससे उनके प्रति रोष, द्वेष, तुच्छपना, निन्दक भाव, घृणा इत्यादि का जन्म ही नहीं होगा, एकमात्र करुणा भाव होगा। इससे हम नये कर्म बन्ध से बच जायेगे, पुराने कर्मों का समताभावपूर्वक भुगतना हो जायेगा और अपनी प्रसन्नता बनी रहेगी; इसलिये ऐसे भाव सदैव स्वागत योग्य हैं, अर्थात् स्वागतम! स्वागतम! इस कारण हम नये पाप कर्मों से और दुःखी होने से बच जायेंगे जो हम अनादि से करते आये हैं जिससे हम दुःखी हैं और उन कर्मों के दुष्चक्र से भी बच जायेंगे। (यह हुआ समभाव - संवर - सामायिक) यह है “धन्यवाद! स्वागतम ! (Thankyou!Welcome!)" का प्रभाव।
अगर हम किसी को कोई गलत काम करते हुए देखें, किसी को ग़लत काम करते हुए वृत्तपत्र या अन्य समाचार माध्यमों के द्वारा जाने अथवा अन्यों के द्वारा सुनें, तब यह सोचना है :
१. ओहो! मैंने भी ऐसा ग़लत काम अनेक बार किया होगा! धिक्कार है मुझे! धिक्कार है! ऐसे दुष्कृत्य के लिये मिच्छामि दुक्कडं! उत्तम क्षमा! (यह हुआ प्रतिक्रमण)
२. अब के बाद ऐसा ग़लत काम, मैं कभी नहीं करूँगा! नहीं ही करूँगा! (यह हुआ प्रत्याख्यान)
३. ग़लत काम करनेवाले को अपने पाप कर्मों की याद दिलानेवाला और वैसे कर्मों की सत्ता में रहते हुए ही सफ़ाई करने में मदद करनेवाले उपकारी मानकर उनके लिये मन में धन्यवाद चिन्तवन करना। इससे उनके प्रति रोष, द्वेष, तुच्छपना, निन्दक भाव, घृणा इत्यादि का जन्म ही नहीं होगा, एकमात्र करुणा भाव होगा। इससे हम नये कर्म बन्ध से बच जायेंगे, पुराने कर्मों का समताभावपूर्वक भुगतना हो जायेगा और अपनी प्रसन्नता बनी रहेगी; इसलिये ऐसे भाव सदैव स्वागत योग्य हैं, अर्थात् स्वागतम! स्वागतम! इस कारण हम नये पाप कर्मों से और दुःखी होने से बच जायेंगे जो हम अनादि से करते आये हैं, जिससे हम द:खी हैं और कर्मों के दुष्चक्र में फँसे हुए हैं। (यह हुआ समभाव – संवर - सामायिक) यह है “धन्यवाद! स्वागतम ! (Thank you! Welcome!)" का प्रभाव।
अगर हम किसी को धर्म की निन्दा करते हुए सुनें, साधु की निन्दा करते हुए सुनें, श्रावक की निन्दा करते हुए सुनें, विकृत धर्म का प्रचार-प्रसार करते हुए जानें, एकान्त धर्म के प्रचारप्रसार करते हुए जानें या व्यवहार-क्रिया में धर्म मानते और प्रचार करते जानें, तब यह सोचना है :