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________________ 98 सम्यग्दर्शन की विधि समझकर, उपकारी मानकर, मन में धन्यवाद दो! स्वागतम् कहो! (Thank you! Welcome!) और नये पापों से बचो। (यह हुआ समभाव - संवर - सामायिक) इस तरह “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thankyou!Welcome!)" का उपयोग हर जगह करना चाहिये। क्योंकि आत्म प्राप्ति के लिये मन का शान्त और प्रसन्न होना अति आवश्यक है। दूसरे, जिसे हम अपना नुक़सान समझते हैं, वह वास्तव में हमारा (आत्मा का) फ़ायदा है; ऐसा समझते ही “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thank you! Welcome!)' का भाव अपने मन में स्थायी रूप ले लेगा अर्थात् सर्वदा उपस्थित रहेगा, जिससे हम नये कर्मों से बच जायेंगे और पुराने कर्मों की समतापूर्वक निर्जरा हो जायेगी। “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thank you! Welcome!)” हर जगह उपयोगी होने के कुछ और दृष्टान्त हम आगे प्रस्तुत कर रहे हैं। जैसे, कोई आलोचक आपकी आलोचना कर रहा है, तब यह सोचना है : १. ओहो! मैंने ऐसा दुष्कृत्य किया था! धिक्कार है मुझे! धिक्कार है! उस दुष्कृत्य के लिये मिच्छामि दुक्कडं! उत्तम क्षमा! (यह हुआ प्रतिक्रमण) २. अब के बाद ऐसा दुष्कृत्य मैं कभी नहीं करूँगा! नहीं ही करूँगा! (यह हुआ प्रत्याख्यान) ३. आलोचक को अपने पाप कर्मों की सफ़ाई में मदद करनेवाला उपकारी मानकर उनके लिये मन में धन्यवाद चिन्तवन करना। इससे उनके प्रति रोष या द्वेष का जन्म ही नहीं होगा, एकमात्र करुणा भाव होगा। इससे हम नये कर्म बन्धन से बच जायेंगे, पुराने कर्मों का समताभावपूर्वक भुगतना हो जाएगा और अपनी प्रसन्नता बनी रहेगी; इसलिये ऐसे भाव सदैव स्वागत योग्य हैं, अर्थात् स्वागतम्! स्वागतम्! इस कारण हम नये पाप कर्मों से और दुःखी होने से बच जायेंगे जो हम अनादि से करते आये हैं, जिससे हम दुःखी हैं और कर्मों के दुष्चक्र में फंसे हुए हैं। (यह हुआ समभाव - संवर - सामायिक) यह है “धन्यवाद! स्वागतम्! (Thankyou!Welcome!)' का प्रभाव। अगर कोई आलोचक दूसरे किसी की आलोचना कर रहा है तब यह सोचना है : १. ओहो! मैंने भी ऐसे (आलोचना का और जिसकी आलोचना हो रही है वैसा) दुष्कृत्य अनेक बार किये हैं! धिक्कार है मुझे! धिक्कार है! ऐसे दुष्कृत्यों के लिये मिच्छामि दुक्कडं! उत्तम क्षमा! (यह हुआ प्रतिक्रमण) २. अब के बाद ऐसे दुष्कृत्य मैं कभी नहीं करूँगा! नहीं ही करूँगा! (यह हुआ प्रत्याख्यान)
SR No.034446
Book TitleSamyag Darshan Ki Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherShailendra Punamchand Shah
Publication Year
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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