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________________ इअ सम्मत्तस्स पंच- अइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं - 1. संका, 2. कंखा, 3. वितिगिच्छा, 4. पर- पासंड- पसंसा, 5. परपासंड-संथवो, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥। 1. 2. 24-35. बारह व्रत अतिचार सहित पहला अणुव्रत - थूलाओ पाणाड़वायाओ वेरमणं, सजीव, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, जान के पहिचान के, संकल्प करके, उसमें सगे सम्बन्धी व स्व शरीर के भीतर में पीड़ाकारी, सापराधी को छोड़कर निरपराधी को आकुट्टी की बुद्धि से हनने का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा ऐसे पहले स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत के पंच-अइयारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं बंधे, वहे, छविच्छेए, अइभारे, भत्तपाण-विच्छेए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥ - दूजा अणुव्रत- थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, कन्नालीए, गोवालीए, भोमालीए, णासावहारो, कूडसक्खिज्जे इत्यादि मोटा झूठ बोलने का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, एवं दूजा स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के पंचअइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोडं {22} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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