SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 15. उपवास प्रतिमास ( ) प्रतिवर्ष ( ) करूँगा/करूँगी। 6. आयंबिल प्रतिमास ( ) प्रतिवर्ष ( ) करूँगा/करूँगी। 7. नीवी प्रतिमास ( ) प्रतिवर्ष ( ) करूँगा/करूँगी। 8. एकासन प्रतिमास ( ) प्रतिवर्ष ( ) करूँगा/करूँगी। 9. पोरसी प्रतिमास ( ) प्रतिवर्ष ( ) करूँगा/करूँगी। 10. एकलठाणा प्रतिमास ( ) प्रतिवर्ष ( ) करूँगा/करूँगी। 11. प्रतिक्रमण प्रतिमास ( ) प्रतिवर्ष ( ) करूँगा/करूँगी। 12. एक वर्ष में शक्ति के अनुसार प्रतिपूर्ण पौषध ( ) और दया ( ) करूँगा/करूँगी। किसी विशेष कारण से पौषध न बन ___ सके तो एक पौषध की 51 सामायिक करूँगा/करूँगी। 13. रात्रि संवर प्रतिमास ( ) प्रतिवर्ष ( ) करूँगा/करूँगी। पौषध व्रत के आगार ___ बीमारी, यात्रा, वृद्धावस्था, सरकारी या लौकिक कारणों से पौषध नहीं हो सका तो 51 सामायिक या 1 बेला अथवा आठ दिन ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा/करूँगी। पौषध की शिक्षाएँ और फल 1. कृष्णपक्ष (बदी) में द्वितीय, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी और अमावस्या ये छः दिन और इसी तरह शुक्ल पक्ष (सुदी) में पूर्णिमा तक छः दिन, इस तरह बारह तिथियों के दिन शक्ति अनुसार उपवास, आयंबिल, नीवी, एकाशन, पोरसी, नवकारसी या अभिग्रहादि रूप कोई भी नियम का पालन करना चाहिए। 2. पौषध अवस्था में जैसे बने वैसे आत्मा को धर्मध्यान से पुष्ट करना चाहिए। 3. वस्त्रादि ऐसे अल्पमूल्य के और सादे रहने चाहिये कि जिससे खुद को o ममत्व (मूच्छी) पैदा न हो और देखने वाले को भी राग पैदा न हो।
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy