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________________ 14. मन, वचन, काय के शुभाशुभ सर्व व्यापारों से निवृत्ति को गुप्ति कहते हैं और शुभ व्यापार में प्रवृत्ति को समिति कहते हैं, समिति पाँच और गुप्ति तीन-अष्ट प्रवचन माता की आराधना पौषध व्रत में विशेष करनी चाहिए। 5. अष्ट प्रवचन माता की आराधना से संवर-आते हुए नये अशुभ कर्मों का रुक जाना, और निर्जरा पुराने बँधे हुए कर्मों का निर्जरणजीर्ण होकर खिर जाना, ये दोनों प्रवचन माता की आराधना से होते हैं और उसकी पूर्ण आराधना पौषध अवस्था में होती है। क्योंकि उस वक्त पौषध अवस्था में होने से सर्वविरतिचारित्री के प्रायः तुल्य है, इसलिए जैसे बने वैसे आराधना करनी चाहिए। पौषध के विषय में बहुश्रुत ग्रन्थकारों ने फरमाया है कि एक प्रतिपूर्ण पौषध करने से करोड़ों वर्षों का नरक का अशुभ कर्म जो पहले बँधा हुआ है, कट जाता है। 7. प्रतिपूर्ण पौषध का सम्यक् प्रकार पालन करने से आते हुए नये अशुभ कर्मों का संवर होता है, जिससे आत्मा भारी होकर अधोगति का भागी नहीं बनता और इसी पौषध व्रत के पालन से पुण्यानुबंधी पुण्य का आश्रव होता है। ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि पौषध से सत्ताईस सौ सतत्तर करोड़, सतत्तर लाख सतत्तर हजार सात सौ सतत्तर इतने पल्योपम और एक पल्य के नव भागों में से सात भाग परिमाण वाला शुभ देवगति का बंध पड़ता है। इसी तरह और भी कर्मों की शुभ प्रकृतियाँ बँधती हैं और उन कर्मों को देवगति में भोग कर मनुष्यभव प्राप्त करके मोक्ष का भागी बनता है। 8. पर्व तिथि के दिन तो कषाय, विषय, आहार, विभूषादि का सर्वथा त्याग कर चढ़ते परिणाम से दृढ़ता और एकाग्रता पूर्वक पौषध
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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