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________________ तीन प्रकार की विराधना-1 ज्ञान-विराधना, 2 दर्शनविराधना और 3 चारित्र-विराधना। (4) चौथे बोले-चार कषाय-1 क्रोध कषाय, 2 मान कषाय, 3 माया कषाय और 4 लोभ कषाय । चार संज्ञा-1 आहार संज्ञा, 2 भय संज्ञा, 3 मैथुन संज्ञा और 4 परिग्रह संज्ञा। चार कथा-1 स्त्री कथा, 2 भात (भोजन) कथा, 3 देश कथा और 4 राज्य कथा। चार ध्यान-1 आर्त्तध्यान, 2 रौद्रध्यान, 3 धर्मध्यान और 4 शुक्लध्यान । तथा-1 पदस्थ, 2 पिण्डस्थ, 3 रूपस्थ और 4 रूपातीत ध्यान। (5) पाँचवें बोले-पाँच क्रिया-1 कायिकी, 2 आधिकरणिकी, 3 प्राद्वेषिकी, 4 पारितापनिकी और 5 प्राणातिपातिकी। पाँच काम गुण-शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श। पाँच महाव्रत-1 सर्वथा प्राणातिपात से निवृत्ति, 2 सर्वथा मृषावाद से निवृत्ति, 3 सर्वथा अदत्तादान से निवृत्ति, 4 सर्वथा मैथुन से निवृत्ति और 5 सर्वथा परिग्रह से निवृत्ति । 60
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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