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________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 1. 2. 3. 4. 5. 6. 32 बोल का बासठिया 1 समुच्चय जीव में जीव के भेद गुणस्थान योग उपयोग लेश्या 14 14 15 12 6 7 3 5 9 6 समुच्चय पर्याप्त में 7 14 15 12 6 समुच्चय अपर्याप्त अनाहारक में 7 3 1 8 6 7 3 4 9 6 समुच्चय अपर्याप्त आहारक में समुच्चय पर्याप्त अनाहारक में 1 2 1 1 समुच्चय पर्याप्त आहारक में 7 13 14 6 समुच्चय जीव में समुच्चय अपर्याप्त में 3 तिर्यञ्च में 22 2 नारकी में जीव के भेद गुणस्थान योग उपयोग लेश्या नारकी में 3 4 11 9 3 नारकी अपर्याप्त में 12 2 2 3 9 3 नारकी पर्याप्त में 1 4 10 9 3 नारकी अपर्याप्त अनाहारक में 2 2 1 8 3 2 2 2 नारकी अपर्याप्त आहारक में नारकी पर्याप्त आहारक में 1 9 4 10 9 12 44 3 जीव के भेद गुणस्थान योग उपयोग लेश्या 1. तिर्यञ्च में 14 6 5 13 9 12. कर्मग्रन्थ भाग 2 गाथा 14 के विवेचन में व गोम्मटमार कर्मकाण्ड 262 में नारकी के अपर्याप्त में सास्वादन समकित नहीं मानी है ।
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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