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________________ wwww AAw बोल जीव. गुण. योग. उप. ले. 59. प्रत्येक शरीरी बादर वनस्पतिकाय के अपर्याप्त असंख्यात गुण 1 1 3 3 4 60. बादर निगोद के अपर्याप्त असं. गुण 1 1 3 3 3 61. बादर पृथ्वीकाय के अपर्या.असं. गुण 1 1 3 3 4 62. बादर अप्काय के अपर्या. असं. गुण 1 1 3 3 4 63. बादर वायुकाय के अपर्या. असं. गुण 1 1 3 3 3 64. सूक्ष्म तेउकाय के अपर्या. असं. गुण 1 1 3 3 3 65. सूक्ष्म पृथ्वीकाय के अपर्या. विशेषा. 1 1 3 3 3 66. सूक्ष्म अप्काय के अपर्या. विशेषा. 1 1 3 3 3 67. सूक्ष्म वायुकाय के अपर्या. विशेषा. 1 1 3 3 3 68. सूक्ष्म तेउकाय के पर्याप्त सं. गुण 1 1 1 3 3 69. सूक्ष्म पृथ्वीकाय के पर्याप्त विशेषा. 1 1 1 3 3 70. सूक्ष्म अप्काय के पर्याप्त विशेषा. 1 1 1 3 3 71. सूक्ष्म वायुकाय के पर्याप्त विशेषा. 1 1 1 3 3 72. सूक्ष्म निगोद के अपर्या. असं. गुण 1 1 3 3 3 73. सूक्ष्म निगोद के पर्याप्त सं. गुण' 1 1 1 3 3 74. अभव्य जीव अनंत गुण 14 1 13 6 6 75. प्रतिपतित समदृष्टि अनंत गुण 14 210 13 6 6 76. सिद्ध भगवंत अनंत गुण 0 0 0 2 0 77. बादर वनस्पतिकाय के पर्याप्त अनंत गुण 1 1 1 3 3 9. बोल क्रं. 54, 60 और 72, 73 निगोद शरीर की अपेक्षा समझना । 10. प्रतिपतित समदृष्टि में पहला और तीसरा, इन दो गुणस्थानों की संभावना लगती है। | 35
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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