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________________ बादर-पृथ्वी, पानी और प्रत्येक वनस्पति । इन 23 के अपर्याप्त और पर्याप्त। 5. स्थिति द्वार-भव्य-द्रव्य देव की स्थिति-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट 3 पल्योपम की। नरदेव की स्थिति-जघन्य 700 वर्ष, उत्कृष्ट 84 लाख पूर्व की। धर्मदेव की स्थिति-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट देशऊणी एक करोड़ पूर्व की। __देवाधिदेव की स्थिति-जघन्य 72 वर्ष, उत्कृष्ट 84 लाख पूर्व की। __ भावदेव की स्थिति-जघन्य 10 हजार वर्ष, उत्कृष्ट 33 सागरोपम की। 6. वैक्रिय द्वार-भव्य-द्रव्य और धर्मदेव के लब्धि हो तो वैक्रिय करे जघन्य 1-2-3 उत्कृष्ट संख्याता, (असंख्याता करने की शक्ति भी हो सकती है, किन्तु असंख्याता करते नहीं।) नरदेव और भावदेव वैक्रिय करे, तो जघन्य 1-2-3 उत्कृष्ट संख्याता। (असंख्याता करने की शक्ति है, किन्तु असंख्याता करते नहीं।) देवाधिदेव में वैक्रिय करने की शक्ति तो है, किन्तु करते नहीं। 7. संचिट्ठण काल द्वार-स्थिति की तरह कहना चाहिए, परन्तु विशेषता यह है कि धर्मदेव का संचिट्ठण काल जघन्य एक समय का है। | 26
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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