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________________ 5. सन्नी (गर्भज) तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय में उत्कृष्ट विरह बारह मुहूर्त का होता है। उनकी अपर्याप्त अवस्था की स्थिति अन्तर्मुहूर्त ही होती है। अपर्याप्त अवस्था की स्थिति से विरहकाल की स्थिति अधिक होने के कारण सन्नी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय अपर्याप्त अवस्था में शाश्वत नहीं हो सकते । 6. चन्द्र, सूर्य के ग्रहण का जघन्य विरह 6 माह का होता है। इसका तात्पर्य यह है कि एक बार चन्द्रग्रहण होने के बाद अगला चन्द्रग्रहण कम से कम 6 माह बाद होता है, इससे पहले नहीं । इसी प्रकार सूर्यग्रहण का जघन्य विरह भी समझना चाहिए। सूर्य ग्रहण का उत्कृष्ट विरह 48 वर्ष का होता है । अर्थात् एक बार सूर्यग्रहण पड़ने के 48 वर्ष बाद तो दुबारा सूर्यग्रहण पड़ता ही है । 7. ग्रहण की अपेक्षा विरह जघन्य 15 दिन का, उत्कृष्ट 42 माह का बतलाया है। जघन्य विरह को इस प्रकार समझना चाहिए कि जैसे किसी माह में चन्द्रग्रहण पड़ा हो तो कम से कम 15 दिन बाद सूर्यग्रहण हो सकता है अथवा सूर्यग्रहण पड़ा हो तो उसके कम से कम 15 दिन बाद चन्द्रग्रहण हो सकता है । क्योंकि चन्द्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा को होता है, जबकि सूर्यग्रहण हमेशा अमावस्या को ही होता है । चन्द्रग्रहण के 42 माह के उत्कृष्ट विरह की अपेक्षा यहाँ भी उत्कृष्ट 42 माह का विरह समझना चाहिए। 18
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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