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________________ देवलोक का 100 रात-दिन का। नौवें तथा दसवें देवलोक का संख्यात महीनों का, ग्यारहवें-बारहवें देवलोक का संख्यात वर्षों का। नवग्रैवेयक की पहली त्रिक के देवों का संख्यात सैकड़ों वर्षों का। दूसरी त्रिक के देवों का संख्यात हजारों वर्षों का। तीसरी त्रिक के देवों का संख्यात लाखों वर्षों का । चार अनुत्तर विमान के देवों का पल के असंख्यातवें भाग (असंख्यात वर्षों) का । सर्वार्थसिद्ध के देवों का पल के संख्यातवें भाग का । सिद्ध भगवान व 64 इन्द्रों का विरह जघन्य 1 समय, उत्कृष्ट 6 महीनों का। चन्द्र, सूर्य के ग्रहण का विरह जघन्य 6 महीनों का, उत्कृष्ट चन्द्रमा का 42 महीनों का और सूर्य का 48 वर्षों का । ग्रहण की अपेक्षा विरह जघन्य 15 दिन का, उत्कृष्ट 42 माह (चन्द्रमास) का। ___ पाँच स्थावर में अनुसमय अविरह, तीन विकलेन्द्रिय और असन्नी तिर्यञ्च में विरह हो तो जघन्य 1 समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त का। सन्नी तिर्यञ्च और सन्नी मनुष्य में विरह हो तो जघन्य 1 समय, उत्कृष्ट 12 मुहूर्त का। नवीन सम्यग्दृष्टि का विरह हो तो जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट 7 दिन का। नवीन श्रावक का विरह हो तो जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट 12 दिन का और नवीन साधु का विरह हो तो जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट 15 दिन का।
SR No.034370
Book TitleRatnastok Mnjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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