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________________ त्रसकाय 161 प्रकाश का भंडार ज्यों का त्यों बना रहता है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार वनस्पतियों और जीवों को प्रकाशमय बनाने वाला रासायनिक पदार्थ एडीनोमाइन-ट्राई-फास्फेट है, जिसका संक्षिप्त नाम ए.टी.पी. है। अमरीका में स्थित ओकरित्र प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों का कथन है कि ए.टी.पी. के कारण सभी पौधे न्यूनाधिक चमकते हैं। फिर अनुसंधान से पता चला कि हरे पौधे के अर्क में से ए.टी.पी. निकाल दिया जाए तब भी उसमें प्रकाश बना रहता है और इस अक्षय प्रकाश की उत्पत्ति क्लोरोफिल से होती है। सभी हरे पौधों में विद्यमान इस प्रकाश को चर्मचक्षुओं से नहीं देखा जा सकता है। इसके लिये विशेष प्रकार के यंत्रों का उपयोग करना होता है। ___ आशय यह है कि वर्तमान जीव-विज्ञान की खोज ने इस तथ्य को उद्घाटित कर दिया है कि एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के तिर्यंचों में उद्योत नाम कर्म का अस्तित्व पाया जाता है। जिन प्राणियों में यह ठंडा प्रकाश पाया जाता है, उनके जीवन-निर्वाह के लिए यह अति उपयोगी होता है। इसलिये इसे पुण्य प्रकृतियों में गिनाया गया है। __जीव में लेश्या, ज्ञान व दर्शन गुण होते हैं। आगे इन्हीं का क्रमशः विवेचन किया जा रहा है। लेश्या ___ जैनदर्शन ‘मन’ को आत्मा से भिन्न अनात्म, जड़ और एक विशेष प्रकार के पुद्गलों (मनोवर्गणा के द्रव्यों) से निर्मित पदार्थ मानता है तथा उसमें उन गुणों को स्वीकार करता है जो पुद्गल में विद्यमान हैं, अर्थात् मन को भी पुद्गल की भाँति वर्ण, आकार व शक्ति युक्त मानता है। आगमों में मन के विभिन्न स्तरों का वर्गीकरण लेश्याओं के रूप में किया
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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