SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 162 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य गया है। लेश्याएँ 6 प्रकार की होती हैं-(1) कृष्ण लेश्या (2) नील लेश्या (3) कापोत लेश्या (4) पीत (तैजस्) लेश्या (5) पद्म लेश्या और (6) शुक्ल लेश्या। ये क्रमशः (1) अशुभतम भाव (2) अशुभतर भाव (3) अशुभ भाव (4) शुभ भाव (5) शुभतर भाव (6) शुभतम भाव की अभिव्यंजक हैं। अत्यन्त महत्त्व की बात तो यह है कि लेश्याओं का नामकरण काले, नीले, कबूतरी, पीले, हल्के गुलाबी, शुभ्र आदि रंगों के आधार पर किया गया है। यह इस बात का स्पष्ट द्योतक है कि किस प्रकार वे विचारों से किस प्रकार की मनोवर्गणाएँ उत्पन्न होती हैं। अतीव हिंसा, क्रोध, क्रूरता आदि अशुभतम भाव कृष्ण लेश्या के अन्तर्गत होते हैं। इन भावों से कृष्ण वर्ण की मनोवर्गणाएँ पैदा होती हैं और ये लेश्या वाले व्यक्ति के चारों ओर बादलों के समान फैल जाती हैं। इसी प्रकार अशुभतर, अशुभ, शुभ, शुभतर, शुभतम भावों से नीले, कबूतरी, पीले, हल्के गुलाबी, शुभ्र वर्ण की मनोवर्गणाओं के मेघों के समुदाय में न केवल वर्ण ही होता है अपितु आकार एवं शक्ति भी होती है। विचारों में रंग, आकार, शक्ति होती है, इस तथ्य को पेरिस के प्रसिद्ध डॉक्टर वेरडक ने यंत्रों की सहायता से प्रत्यक्ष दिखाया है। उन्होंने विचारों से आकाश में जो चित्र बनते हैं उन चित्रों के एक विशेष यंत्र से फोटो भी लिए हैं। यथा एक लड़की अपने पाले हुए पक्षी की मृत्यु पर विलाप कर रही थी। उस समय के विचारों की फोटो ली गई तो मृत पक्षी का फोटो पिंजड़े सहित प्लेट पर आ गया। एक स्त्री अपने शिशु के शोक में तल्लीन बैठी थी। उसके विचारों का फोटो लिया गया तो मृत बच्चे का चित्र प्लेट पर उतर आया, आदि-आदि।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy