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________________ त्रसकाय 153 शरीर में स्थित रेशम कोशों से रेशम बाहर निकलता है। उस रेशम के धागों से वह अपना जाल बनाती है, वह जाला जाल का काम करता है। छोटे-छोटे कीड़े मकड़ी के मायाजाल से आकृष्ट हो उस पर नृत्य करने आते हैं तो जाले के लस्सेदार सूत पर पैर रखते ही फँस जाते हैं। यदि कीड़ा बड़ा हुआ और जाले को झटका देने लगता है तो मकड़ी अपने विषैले दंश से उसे मृत्यु के मुख में पहुँचा देती है। कपटी कोयल-कोयल का कपट तो विख्यात ही है। वह अपने अण्डे कौए के घोंसले में दे आती है, जिनसे निकले बच्चो को कौआ अपने समझकर पालते-पोसते हैं। जेबधारी कंगारु-आस्ट्रेलिया में कंगारु पशु पाया जाता है। इसके पेट में जेब जैसी एक थैली होती है। संकट के समय अपने बच्चे को बचाने के लिए यह उसे जेब में डालकर भाग जाता है। चिपमक्स उत्तरी अमरीका में एक गिलहरी होती है, जिसके दोनों गालों में इतनी बड़ी जेबें होती हैं कि वह अपने सिर से भी बड़े अखरोट उनमें छिपा सकती है। वास्तुशिल्पी शकुनी-भवन निर्माण में भी पक्षी मानव से अधिक चतुर है। बयापक्षी का तिनकों से बना हुआ बहुमंजिला घोंसला, कन्हैया पक्षी का छत के पेंदे पर उल्टा लटकता मिट्टी का घर, कठफोड़वा व हुदहुद पक्षियों के लकड़ी में वृत्ताकार बने बहुद्वार वाले भवन उनकी विलक्षण मति एवं श्रुतज्ञान के द्योतक हैं। भारवाही चींटियाँ-शारीरिक सामर्थ्य की दृष्टि से त्रीन्द्रिय जैसे क्षुद्रप्राणी मानव को भारोत्तलन प्रतियोगिता में पीछे छोड़ते हैं। एक क्विण्टल वजन वाला संसार का कोई भी व्यक्ति अपने से तेरह सौ गुना
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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