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________________ 154 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य अर्थात् तेरह सौ क्विण्टल वजन उठाने की कल्पना भी नहीं कर सकता है, परंतु चींटियाँ अपने शरीर से तेरह सौ गुना वजन उठा सकती हैं। समाधिधारी सर्प-मेंढ़क आदि अगणित जीव शीत व ग्रीष्म ऋतु में भूमि की दरारों में नीचे जाकर अपने को छिपा लेते हैं और बिना अन्नजल लिये सात-आठ मास बिता लेते हैं। फिर जैसे ही वर्षा का जल पहुँचता है, सक्रिय होकर भूमि पर आ जाते हैं। मानव इतने लम्बे समय तक बिना अन्न-जल के एवं बिना हिले-डुले नहीं रह सकता। गति का धनी गरुड़-गति में भी पक्षी मनुष्य से बहुत आगे है। अवाबील डेढ़ सौ किलोमीटर प्रति घण्टे से उड़ती देखी जाती है। शिकारी बाजों की गति तीन सौ किलोमीटर प्रति घण्टे तक पायी गयी है। प्रयास करने पर भी इनकी गति दो सौ किलोमीटर से कम नहीं होती है। मक्खी चार सौ मीटर की दौड़ एक सैकेण्ड से भी कम समय में पूरी कर सकती है। जबकि विश्व में सर्वश्रेष्ठ धावक मानव को 44.5 सैकेण्ड लगते हैं। वार्तालाप पशु-पक्षियों का-जैनदर्शन के अनुसार सब त्रसकाय जीवों में भाषा का प्रयोग होता है। खोज से पता चला है कि छोटे-छोटे कीड़े कई प्रकार से आपस में बातें करते हैं। चींटियाँ खट-खटाने जैसी बहुत धीमी आवाज पैदा करती है तथा कुछ चींटियाँ अपना मुँह से मुँह मिलाकर अपनी बात कहती है। दीमक और तिलचट्टे भी इसी प्रकार अपनी बात कहते हैं। तितलियाँ और पतंगे गंध के माध्यम से अपना संदेश कहते हैं। जिराफ और लामा को पहले गूंगा माना जाता था, परंतु विशेषज्ञों ने सूक्ष्मता से जाँच की तो ज्ञात हुआ कि इतने विशालकाय पशु बहुत ही धीमी सीटी जैसी आवाज में बात करते हैं। बंदरों की तो पूरी अपनी भाषा है।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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