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________________ 112 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य वनस्पतिविज्ञान में परागकोश से परागकण के योनिछत्र तक पहुंचने की क्रिया को सेचन (Pollination) कहा जाता है। यह दो प्रकार की होती है-स्व-सेचन और पर-सेचन। जब किसी फूल का परागकण उसी फूल के योनिछत्र तक पहुँचता है तो यह स्व-सेचन कहलाता है, जैसा कृष्णकोली, सूर्यमुखी आदि फूलों में होता है। जब किसी फूल का परागकण दूसरे फूल के योनिछत्र पर पहुँचता है तो उसे पहुंचने में वायु, कीट-पतंग, जानवर, जल आदि अन्य माध्यमों की आवश्यकता होती है। यह पर-सेचन कहलाता है। वायु-सेचन, गेहूँ, जौ आदि में, कीटसेचन सुंदर-सुगन्धित फूलों में, जलसेचन बैलिसनेरिया आदि जल में लगे पौधों में तथा जन्तुओं द्वारा सेचन कदंब आदि पेड़ों के फूलों में होता है। गर्भाधान-सेचन क्रिया द्वारा परागकण योनिनली के मार्ग से गर्भाशय (overy) में पहुँचते हैं। वहाँ प्रत्येक परागकण एक रजकण से जुड़ता है। परागकण और रजकण का यह मिलन ही गर्भाधान है। गर्भाधान के फलस्वरूप बीजों की उत्पत्ति होती है। गर्भाशय में जितने रजकण होते हैं उनमें जितने में परागकणों द्वारा गर्भ स्थिति हो जाती है उतने ही बीज गर्भाशय में पैदा होते हैं। यदि परागकणों का रजकणों से मिलन न हो तो बीज नहीं बन सकते। फूल तीन प्रकार के होते हैं नरलिंगी, मादालिंगी व उभयलिंगी। पपीता, खरबूजा, करेला, लौकी आदि में नरलिंगी और मादालिंगी फूल अलग-अलग होते हैं और मादा फूल पैदा करने वाले पेड़ अलग होते हैं। इस प्रकार के फूलों में गर्भाधान परसेचन से ही होता है। यही कारण है कि पपीते के बगीचे में मादावृक्षों के साथ यदि कोई नरवृक्ष न हो तो वे फलते ही नहीं हैं। गुलाब, गुड़हल, मल, सेम आदि उभय लिंगी हैं। इनमें एक ही फूल में पुंकेसर तथा स्त्रीकेसर दोनों ही मिलते हैं।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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