SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वनस्पति में संवेदनशीलता 111 फूल ही वनस्पति के गर्भाधान का प्रजनन का मुख्य स्थान है। फूल में मुखयतः 5 भाग होते हैं-(1) पुष्पवृन्त (Pedicel)-फूल का डंठल (2) बाह्य दलपुंज (Calvese)-इसमें स्थित पत्तियाँ फूल के सबसे नीचे या बाहर की ओर रहती हैं व फूल के भीतरी भागों की रक्षा करती हैं। (3) दलपुंज (Carolla)-इसमें स्थित पत्तियाँ या कलियाँ चित्ताकर्षक चटकीले रंग की होती हैं। ये फूल के जननांगों की रक्षा करतीं तथा अपनी सुंदरता से कीट-पतंगों को आकर्षित कर परागण कार्य में सहायता करती हैं। (4) पुमंग-परागकेसर (Androecium)-यह पुष्प का नर-जनन अंग होता है, यह चटकीली कलियों के भीतर की ओर होता है। इसके दो भाग होते हैं-पुंतन्तु और परागकोश। पुंतन्तु परागकोश को ऊपर उठाये रखते हैं। परागकोश में परागकक्ष होते हैं, जिनके फटने पर अगणित पराग-कण बाहर निकलते हैं। (5) जायाँग-गर्भकेसर (Gynaecium)यह फूलों के बीचों-बीच होता है। इसके तीन भाग होते हैं-(1) अंडाशय (Overy), (2) वर्तिका (Style), (3) वर्तिकाग्र (Stigma)। जायाँग का निचला चौड़ा व चपटा भाग अंडाशय कहलाता है। यह फऊल का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसी में बीजाण्डभ्रूणधानी आदि होते हैं। इसी से एक लम्बी नली निकलती है जिसे वर्तिका या योनिनली कहते हैं। उसके सिरे पर एक गोल धुंडी सदृश रचना होती है जिसे वर्तिकान या योनिछत्र कहते हैं। पुंकेसर के परागकणों का स्त्रीकेसर के योनिछत्र से सम्मिलन, संगम या संयोजन ही वनस्पति की प्रजनन क्रिया है। परागकण योनिछत्र पर आकर गिरते हैं और योनिनली में होते हुए अंडाशय-गर्भाशय में चले जाते हैं, वहाँ फल और बीज बनते हैं।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy