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________________ वनस्पति में संवेदनशीलता 113 मैथुन या गर्भाधान की यह क्रिया केवल फूल देने वाली वनस्पतियों में ही नहीं अपितु फूल न देने वाली वनस्पतियों में भी होती है। ऐसी वनस्पतियाँ मुख्यत: तीन प्रकार की हैं - थैलोफाइटा, बायोफाइटा और टेरीडोफाइटा। थैलोफाइटा में शैवाल, काई तथा फफूंदी मुख्य हैं। शैवाल में नरयुग्मक और स्त्रीयुग्मक का सायुज्य होता है, फफूंदी में धन तथा ऋण अंशुओं का। ब्रायोफाइटा में नर और नारी के अंग अलग-अलग होते हैं। इन्हीं के मिलन से स्पोरेनिजियम होकर प्रजनन होता है। टेरीडोफाइटा में भी इसी से मिलती-जुलती प्रक्रिया से प्रजनन होता है। तात्पर्य यह है कि फूल और बिना फूल वाली सब ही जातियों की वनस्पति में मैथुन व प्रजनन क्रिया विद्यमान है, आज यह वनस्पति विज्ञान में निर्विवाद मान्य है । इससे जैनागम में प्रतिपादित इस सिद्धांत की पुष्टि होती है कि वनस्पति में मैथुन संज्ञा है। परिग्रह संज्ञा - 'मुच्छा परिग्गहो वुत्तो' (दशवैकालिक 6.21 ) अर्थात् पदार्थों में मूर्च्छा या ममत्व रखना एवं उनका संग्रह करना 'परिग्रह' है। वनस्पति में परिग्रहवृत्ति भोजन-संग्रह रूप में पायी जाती है। इस विषय के संबंध में विज्ञान जगत् में महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने हैं, यथा - (1) पतझड़ के दिनों में जब पेड़ों की पत्तियाँ झड़कर गिर जाती हैं तब उनके भोजन बनाने का कार्य रुका रहता है। उस समय यदि पेड़ों के पास पहले से इकट्ठा किया हुआ भोजन न हो तो वे उन दिनों अपना जीवन धारण न कर सकें। ऐसे अवसरों के लिए बड़े पेड़ों के तनों में भोजन एकत्रित रहता है जिसके द्वारा वे जीवित रहते हैं । इसी प्रकार बहुतसी ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियाँ आती हैं जिनमें पेड़ों को अपना जीवन सुरक्षित रखने के लिए अपने किसी भाग में विशेष रूप से भोजन इकट्ठा करना पड़ता है।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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