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________________ 170] [दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद ब्रह्मचर्य का नाश, प्राणवध में संयम का भी वध है। याचक के हो अन्तराय, मुनि के प्रति क्रोध विवर्द्धक है।। अन्वयार्थ-बंभचेरस्स = घर में बैठने से ब्रह्मचर्य के नियम का । विवत्ती = विनाश होता है । च = और । पाणाणं = प्राणियों के। वहे = समारम्भ से। वहो = संयम जीवन का वध होता है। वणीमगपडिग्घाओ = अन्य याचक या भिखारी के लाभ में भी अन्तराय लगती है। अगारिणं = तथा गृहपति को। पडिकोहो = क्रोध होता है। भावार्थ-साधु यदि गृहस्थ के घर में बैठेगा तो उसके ब्रह्मचर्य व्रत के सम्बन्ध में शंका होगी और आधाकर्मी आहार तैयार किया गया तो प्राणियों के वध से उसके संयम-गुण की घात होगी। माँगने के लिये आये हुए भिखारी आदि को अशनादि के मिलने में अन्तराय भी लगेगी। घर के कार्य में व्यवधान पड़ने से गृहपति को क्रोध होगा। वह यही चाहेगा कि महाराज जितना जल्दी हो चले जायें। अगुत्ती बंभचेरस्स, इत्थीओ वा वि संकणं । कुसीलवड्ढणं ठाणं, दूरओ परिवज्जए ।।59।। हिन्दी पद्यानुवाद ब्रह्मचर्य का हो ना गोपन, शंका हो नारी दर्शन से। कुशीलवर्द्धक स्थान मान, छोड़े मुनि रहकर दूर इसे ।। अन्वयार्थ-बंभचेरस्स = गृहस्थ के बाल बच्चों वाले घर में ठहरने से ब्रह्मचर्य धर्म की । अगुत्ती = गुप्ति यानी बाड़ का पालन नहीं होगा। वा वि = अथवा । इत्थीओ = सुन्दर रमणियों के संग से । संकणं = ब्रह्मचर्य व्रत में शंका उत्पन्न होगी। कुसीलवड्ढणं = अत: साधु कामराग बढ़ाने वाले । ठाणं = स्थान का । दूरओ = दूर से । परिवज्जए = परित्याग करे । भावार्थ-ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये नव वाडें बताई गई हैं। गृहस्थ के घर में बैठने से उन नव वाडों में से 1-2-3-4-6 का सम्यक् पालन नहीं होता । घर में स्त्रियों के बीच बैठने से ब्रह्मचर्य की सुरक्षा नहीं होती। स्त्रियों का अति संसर्ग शंका का कारण होता है । इसलिये कुशील बढ़ाने वाले स्थान का मुनि दूर से ही वर्जन कर दे। उत्तराध्ययन सूत्र के 16वें अध्ययन में ब्रह्मचर्य के दश समाधि स्थान बतलाये गये हैं। घर में बैठने से इनका पालन नहीं होता। अतः साधु गृहस्थ के घर में नहीं बैठे। तिण्हमण्णयरागस्स, णिसिज्जा जस्स कप्पड़। जराए अभिभूयस्स, वाहियस्स तवस्सिणो ।।60।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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