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________________ छठा अध्ययन] हिन्दी पद्यानुवाद इन तीनों में से कोई भी, है सकता बैठ गृही घर में । बैठना वृद्ध तपस्वी रुग्ण साधु का, दोष न माना पर घर में ।। अन्वयार्थ-जराए = वृद्धावस्था से । अभिभूयस्स = घिरे हुए। वाहियस्स = व्याधि से पीड़ित । तवस्सिणो = और तपस्वी । तिन्हं = इन तीनों में से। अण्णयरागस्स = जो कोई भी हो । जस्स = उसको । णिसिज्जा = गृहस्थ के घर में बैठना । कप्पड़ = कल्पता है I हिन्दी पद्यानुवाद भावार्थ-गृहस्थ के घर में न बैठना यह श्रमण का 16वां आचार है । कभी वृद्धावस्था से आ गई थकान के कारण, रोग के कारण शारीरिक शक्ति क्षीण होने से चक्कर आ जाने से अथवा विकट तप के कारण हुई शारीरिक कमजोरी इन तीन कारणों में से किसी कारण से मजबूरी में आवश्यक हो जाने से कोई साधु गृहस्थ के घर में बैठ जाता है तो वह भगवन्तों की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता । वाहिओ वा अरोगी वा, सिणाणं जो उ पत्थए । वुक्कंतो होइ आयारो, जढो हवइ संजमो ।।61।। हिन्दी पद्यानुवाद रोगी अथवा निरोगी मुनि, यदि स्नान कभी भी करता है। आचार भंग होता उसका, संयम से पीछे हटता है ।। [171 अन्वयार्थ-वाहिओ = रोगी। वा = अथवा अरोगी = निरोग होकर वा = अथवा जो उ = जो भी । सिणाणं = स्नान की । पत्थए = इच्छा करता है। आय = वह तप-नियम के आचार का । वुक्कंतो = उल्लंघन । होइ = करता है, और । संजमो = उसका संयम । जढो = जड़ (परित्यक्त, मलिन) । हवड़ = हो जाता है । भावार्थ-सतरहवें आचार स्थान में बतलाया गया है कि साधु रोगी हो या निरोग, यदि वह स्नान की इच्छा करता है तो वह आचार-धर्म का उल्लंघन करता है और अपने संयम को दूषित करता है । संतिमे सुहुमा पाणा, घसासु भिलगासु य। भिक्खू सिणातो, वियडेणुप्पलावए । 162 11 जे क्षार और चिकनी मिट्टी में, सूक्ष्म बहुत से प्राणी हैं। करके स्नान भिक्षु उनको, देते पीड़ा मनमानी हैं ।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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