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________________ छठा अध्ययन [169 गंभीरविजया एए, पाणा दुप्पडिले हगा। आसंदी पलियंको य, एयमढे विवजिया ।।56।। हिन्दी पद्यानुवाद कुर्सी पलंग के जीवों का, होता है बहुत कठिन निर्णय । ये दुष्कर प्रतिलेखन वाले, अतएव त्याग दे इन्हें सदय ।। अन्वयार्थ-एए = जिनमें दोष बतलाये हैं वे कुर्सी आदि । गंभीरविजया = गम्भीर छिद्र वाले होते हैं। पाणा = खटमल आदि प्राणी । दुप्पडिलेहगा = इनमें कठिनाई से देखे जाते हैं। एयमढें = इसलिये निर्ग्रन्थों ने । आसंदी = कुर्सी । य = और । पलियंको = पलंग का । विवज्जिया = विवर्जन किया है। भावार्थ-जैन साधु अपने उपकरणों का दोनों समय अवलोकन करता है। वह ऐसी वस्तु को नहीं रखता जिसमें भीतर छिपे जीव-जन्तु नहीं देखे जा सकें । कुर्सी, पलंग, मंच आदि की बनावट गहरे छिद्र वाली होने से सरलता से वे देखे नहीं जा सकते, इसलिये साधु इनका वर्जन करते हैं। यह साधु का 15वां आचार स्थान है। गोयरग्गपविट्ठस्स, णिसिज्जा जस्स कप्पड़। इमे रिसमणायारं, आवज्जइ अबोहियं ।।57।। हिन्दी पद्यानुवाद बैठे गृहस्थ के घर में जो, भिक्षा लेने को गया श्रमण । वह अनाचार को पाता है, मिथ्यात्व (अबोधि), रूप जिसका वर्णन ।। अन्वयार्थ-गोयरग्गपविट्ठस्स = गोचरी में गया हुआ। जस्स णिसेज्जा = जो साधु गृहस्थ के घर में ऐसे कुर्सी आदि उपकरणों पर या वैसे भी निषद्या । कप्पइ = करता है यानी बैठता है। इमेरिसं = आगे बताया जाने वाले । अणायारं = अनाचार दोष का सेवन करने से। अबोहियं = वह मिथ्यात्व को, अबोधि को । आवज्जइ = प्राप्त करता है। भावार्थ-गृहस्थ के घर गोचरी आदि के कारण से गया हुआ साधु गोचरी लेकर तत्काल लौट जाता है। घर में बैठकर या खड़े-खड़े भी कथा कहने का विस्तार नहीं करता । अगर आवश्यकता समझे तो मात्र एक उदाहरण से अधिक नहीं कहता । घर में बैठने से अगली गाथा में कहे अनुसार दोष लगता है जो अबोधि यानी मिथ्यात्व का कारण होता है। विवत्ती बंभचेरस्स, पाणाणं च वहे वहो । वणीमगपडिग्घाओ, पडिकोहो अगारिणं ।।58।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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