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________________ 1681 [दशवैकालिक सूत्र आसंदी पलियंकेसु', मंचमासालएसु वा। अणायरियमज्जाणं, आसइत्तु सइत्तु वा ।।54।। हिन्दी पद्यानुवाद कुर्सी पलंग माचा पीढी, ऐसे ही शयन तथा आसन । उन पर सोने तथा बैठने, का संयमी को है वर्जन ।। अन्वयार्थ-आसंदी = बेंत की बनी कुर्सी या मुड्डे पर । पलियंकेसु = पलंग पर। मंचं = मंच तथा । वा = अथवा । आसालएसु = जिसके पीछे सहारा हो । आसइत्तु = ऐसे आसनों पर बैठना । वा = अथवा । सइत्तु = सोना । अज्जाणं = आर्य पुरुष-साधुओं के लिये। अणायरियं = आचरण योग्य नहीं है। भावार्थ-त्यागमूर्ति साधु भोग भावना से विरत होता है। फिर वह ऐसे आसन पर बैठता है जिसको वह अच्छी तरह से देख सके एवं उसका प्रतिलेखन कर सके । यह सम्भव नहीं होने के कारण मुनि आसंदी, पलंग और मंच तथा सहारे वाले आसन बैठने के लिये एवं सोने के लिये ग्रहण नहीं करता। णासंदी पलियंकेसु', ण णिसिज्जा ण पीढए। णिग्गंथाऽपडिले हाए, बुद्धवुत्तमहिट्ठगा ।।55।। हिन्दी पद्यानुवाद आसंदी और पर्यंकों पर, आसन तथा पीठ ऊपर । प्रतिलेखन सम्भव हो न जहाँ, ना बैठे मुनि जिन श्रद्धाकर ।। अन्वयार्थ-बुद्धवुत्तमहिट्ठगा = भगवान के वचनों पर अधिष्ठित (स्थिर) रहने वाले । णिग्गंथा = निर्ग्रन्थ । आसंदीपलियंकेसु = आसंदी-कुर्सी एवं पलंग पर । ण = नहीं सोवे । ण णिसिजाण पीढए = रूई की गादी पर तथा मुड्डे आदि पर नहीं बैठे, नहीं सोवे, क्योंकि । अपडिलेहाए = उनकी प्रतिलेखना नहीं हो सकती। भावार्थ-क्योंकि सूक्ष्म जीवों की प्रतिलेखना नहीं हो सकती इसलिये शास्त्र-वचनों पर श्रद्धा रखने वाले, स्थिर रहने वाले एवं उन पर आचरण करने वाले मुनि बेंत की कुर्सी या पलंग और मुड्डे-गादी आदि पर न बैठें, न खड़े हों एवं न शयन करें। प्राचीन सन्तों ने राजसभाओं आदि में भी कुर्सी को स्वीकार नहीं कर अपनी मर्यादा का सम्यक पालन किया। आज हमें भी उस परम्परा पर चलने का ध्यान रखना चाहिये। 1. पलिअंकेसु - पाठान्तर । 2. पलिअंकेसु - पाठान्तर ।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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