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________________ पाँचवाँ अध्ययन] [99 अन्वयार्थ-असणं = अशन-आहार । पाणगं = द्राक्षा पानक आदि । वा = अथवा । खाइम = खाद्य मेवा । तहा = तथा । साइमं वि = स्वादिम चूर्ण लवंग आदि भी। जंजाणिज्ज = जिसको जाने । वा = अथवा । सुणिज्जा = सुने कि । इमं = यह पदार्थ । दाणट्ठा = दान के लिये । पगडं = बनाया गया है। भावार्थ-यह अशन, पानक, खाद्य-मेवा, स्वाद्य-लवंगादि पदार्थ दान के लिये बनाया गया है, ऐसा जाने अथवा सुने तो..............। तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं। दितियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पइ तारिसं ।।48।। हिन्दी पद्यानुवाद फिर वह अशनादि साधुजनों के, हित में होता ग्राह्य नहीं। दात्री को बोले मुनिवर है, मुझको ऐसा कल्प्य नहीं।। अन्वयार्थ-तं = वह । भत्तपाणं तु = आहार-पानी । संजयाण = साधुओं के लिये । अकप्पियं = अग्राह्य । भवे = होता है, साधु । दितियं = देने वाली से । पडियाइक्खे = कहे कि । मे = मुझको। तारिसं = वैसा आहार लेना । ण कप्पइ = नहीं कल्पता है। भावार्थ-वह आहार-पानी साधुओं के लिये अग्राह्य है। अत: साधु देने वाली को निषेध करते हुए, कहे कि वैसा आहार मुझको लेना उचित नहीं है। असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, पुण्णट्ठा पगडं इमं ।।49।। हिन्दी पद्यानुवाद अशन पान खादिम या स्वादिम, पुण्य हेतु जो निर्मित है। सुन ले या जाने ऐसा तो, वह मुनियों को वर्जित है।। अन्वयार्थ-असणं = अशन-आहार । पाणगं = द्राक्षापानक आदि । वा = अथवा । खाइमं वि = खाद्य-मेवा भी। तहा = तथा । साइमं = स्वाद्य के सम्बन्ध में । जं जाणिज्ज = जाने । वा = अथवा। सुणिज्जा = सुन ले कि । इमं = यह आहार । पुण्णट्ठा = पुण्य के लिये । पगडं = बनाया गया है। भावार्थ-जो अशन, पानक, खाद्य-मेवा, स्वाद्य-लवंगादि पदार्थ जो पुण्य के लिये बनाया गया है, ऐसा जाने अथवा सुने तो..........।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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