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________________ 98] [दशवैकालिक सूत्र दगवारेण-पिहियं, नीसाए पीढएण वा। लोढेण वा वि लेवेण, सिलेसेण वि केणइ ।।45।। हिन्दी पद्यानुवाद सजल कुम्भ या पिष्ट-शिला से, तथा काष्ठ के पीढे से। लोढे मिट्टी लेप आदि वा, लाख श्लेष के गोले से।। अन्वयार्थ-दगवारेण = पानी के घड़े से । नीसाए = चाकी से । वा = अथवा। पीढएण = काष्ठ के पीठ से । लोढेण = पीसने के लोढ़े से । पिहियं = ढका हो । वा वि लेवेण = अथवा मिट्टी आदि के लेप। वि = भी । केणइ (केणई) = किसी। सिलेसेण = लाख आदि के श्लेष से। भावार्थ-अशनादि खाद्य वस्तु यदि पानी के घड़े से, चक्की, काष्ठ-पीठ, पीसने के लोढ़े से अथवा मिट्टी के लेप तथा लाख आदि श्लेष से चिपका कर ढका हो। तं च उब्भिंदिया दिज्जा, समणट्ठाए व दावए। दितियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पड़ तारिसं ।।46।। हिन्दी पद्यानुवाद बंद पात्र का भेदन कर, यदि मुनि के लिये स्वयं देवे। या दिलवाये तो दात्री को, है कल्प्य नहीं यह साधु कहे ।। अन्वयार्थ-च तं = और उस ढके पात्र को । समणट्ठाए व = साधु के लिये । दावए = दाता । उभिंदिया = खोलकर के आहारादि । दिज्जा = दे तो साधु । दितियं = देने वाली से । पडियाइक्खे = कहे कि । मे = मुझको । तारिसं = वैसा आहार ग्रहण करना । ण कप्पड़ = नहीं कल्पता है। भावार्थ-साध के लिये उसका उद्भेदन कर दाता देवे तो, देने वाली से साधु कहे कि वैसा आहार मुझे लेना कल्पता नहीं है। असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, दाणट्ठा पगडं इमं ।।47।। हिन्दी पद्यानुवाद अशन पान खादिम या स्वादिम, दान हेतु जो रक्षित है। अगर जान ले या सुन ले तो, वह हो जाता वर्जित है।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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