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________________ {224 [अंतगडदसासूत्र आराधना करके जहाँ आर्या, चंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ = चन्दना आर्या थी वहाँ आई। उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अज्जं = आकर आर्यचन्दना आर्या को, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता = वन्दन-नमस्कार करती है, वन्दन-नमस्कार करके, बहूहिं चउत्थेहिं जाव भावेमाणी = बहुत से उपवासों से आत्मा को भावित करती हुई, विहरइ = विचरने लगी। तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा = तब वह महासेनकृष्णा आर्या, तेणं ओरालेणं जाव उवसोभेमाणी उवसोभेमाणी चिट्ठइ = उस प्रधान तप से यावत् शोभायमान होकर रहने लगी, तए णं तीसे महासेणकण्हाए = फिर महासेनकृष्णा, अज्जाए अण्णया कयाई पुव्वरत्तावरत्त काले = आर्या को अन्य किसी दिन पिछली रात्रि के समय, चिंता जहा खंदयस्स जाव = स्कंदक के समान धर्म चिन्ता उत्पन्न हुई। अज्जचंदणं अज्जं = आर्य चन्दना आर्या को, आपुच्छइ जाव संलेहणा = पूछकर यावत् संलेखना की, कालं अणवकंखमाणी विहरइ = और काल (मृत्यु) को नहीं चाहती हुई विचरने लगी। तए णं सा महासेण कण्हा अज्जा = फिर उस महासेन कृष्णा आर्या ने, अज्जचंदणाए अज्जाए अंतिए = आर्य चन्दना आर्या के पास, सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता = सामायिकादि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, बहुपडिपुण्णाई सत्तरस वासाइं परियायं = पूरे सत्रह वर्ष तक चारित्र्य धर्म का, पालइत्ता (पाउणित्ता) = पालन करके, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता = एक मास की संलेखना से आत्मा को भावित करके, सटुिंभत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए कीरइ = साठ भक्त अनशन को पूर्ण कर यावत् जिस कार्य के लिए संयम लिया था, जाव तमढें आराहेइ = उसकी पूर्ण आराधना करके, चरिम-उस्सासणीसासेहिं = अन्तिम श्वासोच्छ्वास से, सिद्धा बुद्धा = सिद्ध बुद्ध मुक्त हुई, एवं श्रेणिक राजा की भार्याओं में से। अट्ठ य वासा आदी = पहली काली आर्या ने आठ वर्ष तक चारित्र पर्याय का पालन किया, एकोत्तरियाए जाव सत्तरस = एक-एक रानी के चारित्र पर्याय में एक-एक वर्ष की वृद्धि होती गई, अन्तिम दसवीं रानी ने सत्तरह वर्ष तक, एसो खलु परियाओ = चारित्र पर्याय का पालन किया, सेणियभज्जाण नायव्वो = ये सभी श्रेणिवक राजा की रानियाँ (पत्नियाँ) थी। भावार्थ-इस प्रकार महासेन कृष्णा आर्या ने इस वर्द्धमान आयम्बिल' तक की आराधना चौदह वर्ष तीन महीने और बीस अहोरात्र की अवधि में सूत्रानुसार विधि पूर्वक पूर्ण की। आराधना पूर्ण करके आर्या महासेन कृष्णा जहाँ अपनी गुरुणी आर्या चन्दनबाला थीं, वहाँ आई और चंदनबाला को वंदना नमस्कार करके उनकी आज्ञा प्राप्त करके बहुत से उपवास आदि तप से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। इस महान् तप के तेज से महासेन कृष्णा आर्या शरीर से दुर्बल हो जाने पर भी अत्यन्त दैदीप्यमान लगने लगी।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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