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________________ {222 [अंतगडदसासूत्र कृत्वा चतुर्थं करोति, कृत्वा त्रीणि आचामाम्लानि करोति, कृत्वा चतुर्थं करोति, कृत्वा चत्वारि आचामाम्लानि करोति, कृत्वा चतुर्थं करोति, कृत्वा पञ्च आचामाम्लानि करोति, कृत्वा चतुर्थं करोति, कृत्वा षडाचामाम्लानि करोति, कृत्वा चतुर्थं करोति, कृत्वा एकोत्तरिकया वृद्धया आचामाम्लानि वर्धन्ते चतुर्थान्तरितानि यावत् आचामाम्लशतं करोति, कृत्वा चतुर्थं करोति ।1। अन्वायार्थ-एवं महासेणकण्हा वि = इसी प्रकार महासेनकृष्णा का अध्ययन है। नवरं आयंबिलवड्ढमाणं = विशेष यह है कि वह आयंबिल वर्धमान, तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ = तप को अंगीकार करके विचरने लगी। तं जहा- = जो इस प्रकार है-, आयंबिलं करेइ, करित्ता = एक आयंबिल किया, करके, चउत्थं करेइ, करित्ता = उपवास किया, करके, बे आयंबिलाई करेइ, करित्ता = फिर दो आयंबिल किये, करके, चउत्थं करेइ, करित्ता = उपवास किया, करके, तिण्णि आयंबिलाई करेइ, करित्ता = फिर तीन आयंबिल किये, करके, चउत्थं करेइ, करित्ता = उपवास किया, करके, चत्तारि आयंबिलाई करेइ, करित्ता = चार आयंबिल तप किये, करके, चउत्थं करेइ, करित्ता = उपवास किया, करके, पंच आयंबिलाई करेइ, करित्ता = पाँच आयंबिल किये, करके, चउत्थं करेइ, करित्ता = उपवास किया, करके, छ आयंबिलाई करेइ, करित्ता = छ: आयंबिल किये, करके, चउत्थं करेइ, करित्ता = उपवास किया, करके, एकोत्तरियाए वुड्ढीए आयंबिलाई = इस प्रकार एक एक की वृद्धि से आयंबिल, वइंति चउत्थंतरियाईजाव = बढ़ाये बीच बीच में उपवास किया यावत्, आयंबिलसयं करेड़, करित्ता = सौ आयंबिल किये, करके, चउत्थं करेइ = उपवास किया। भावार्थ-इसी प्रकार महासेन कृष्णा का दसवाँ अध्ययन भी समझना चाहिये । इसमें विशेष इतना ही है कि महासेन कृष्णा वर्द्धमान आयंबिल' तप को अंगीकार करके विचरने लगी। जो इस प्रकार है प्रारम्भ में एक आयंबिल करके उपवास किया, दो आयंबिल किये और उपवास किया, तीन आयंबिल किये और उपवास किया, चार आयंबिल किये और उपवास किया, पाँच आयंबिल किये और उपवास किया, छह आयंबिल किये और उपवास किया, ऐसे एक एक की वृद्धि से आयंबिल बढ़ाये । बीचबीच में उपवास किया, इस प्रकार सौ आयंबिल करके उपवास किया। यह वर्द्धमान आयम्बिल तप हुआ। सूत्र 2 मूल- तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्डमाणं तवोकम्मं चोबसेहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसेहि य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव सम्म काएणं फासेइ जाव आराहित्ता, जेणेव अज्ज-चंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अज्ज वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थेहिं जाव भावेमाणी विहरइ। तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव उवसोभेमाणी उवसोभेमाणी चिट्ठइ।।2।।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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