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________________ { 134 [अंतगडदसासूत्र गए चेव वंदिस्सामि नमंसिस्सामि? तं गच्छामि णं अहं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं महावीरं वंदामि जाव पज्जुवासामि।।७।। संस्कृत छाया- ततः खलु तं सुदर्शनं श्रेष्ठिनम् अम्बापितरौ एवमवदताम्-एवं खलु पुत्र! अर्जुनक: मालाकारः यावत् घातयन् विहरति, तद् मा खलु त्वं हे पुत्र ! श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दको निर्गच्छ, मा खलु तव शरीरस्य व्यापत्तिः भविष्यति । त्वं खलु इह गत एव श्रमणं भगवन्तं महावीरम् वन्दस्व, नमस्य । तत: खलु सुदर्शनः श्रेष्ठी अम्बापितरौ एवमवदत्-किं खलु अहं अम्बातातौ ! श्रमणं भगवन्तं महावीरम् इह आगतम्, इह प्राप्तम्, इह समवसृतम्, इह गत एव वन्दिष्ये नमस्यिष्यामि ? तद् गच्छामि खलु अहम् अम्बातातौ ! युष्माभिः अभ्यनुज्ञात: सन् श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दे यावत् पर्युपासे ।।9।।। अन्वायार्थ-तए णं तं सुदंसणं सेटुिं अम्मापियरो = यह सुनकर माता-पिता सुदर्शन सेठ, एवं वयासी- = को इस प्रकार बोले-, एवं खलु पुत्ता ! अज्जुणए मालागारे = हे पुत्र ! निश्चय अर्जुन मालाकार, जाव घाएमाणे विहरइ = यावत् मारता हुआ घूम रहा है। तं मा णं तुमं पुत्ता ! समणं = इसलिये हे पुत्र ! तुम श्रमण, भगवं महावीरं वंदए णिग्गच्छाहि = भगवान महावीर को वन्दन करने हेतु बाहर मत जाओ, मा णं तव सरीरयस्स वावत्ती भविस्सइ = कदाचित् तुम्हारे शरीर की हानि हो जाय, तुम णं इहगए = अत: तुम यहाँ रहते हए, चेव समणं भगवं महावीरं = ही श्रमण भगवान महावीर, वंदाहि नमसाहि । = को वन्दना नमस्कार कर लो । तए णं सुदंसणे सेट्टी अम्मापियरं = तब सुदर्शन सेठ ने अपने माता पिता, एवं वयासी- = को इस प्रकार कहा-, किण्णं अहं अम्मयाओ ! समणं = हे माता पिता ! जब श्रमण, भगवं महावीरं इहमागयं = भगवान महावीर यहाँ पधारे हैं, इह पत्तं इह समोसढं = यहाँ विराजे हैं, यहाँ समवसृत हुए हैं, तो मैं, इह गए चेव वंदिस्सामि नमंसिस्सामि? = यहाँ से ही कैसे वन्दननमस्कार करूँ ? तं गच्छामि णं अहं अम्मयाओ ! = इसलिये हे माता पिता !, तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे = आप आज्ञा दीजिये, समणं भगवं महावीरं वदामि = मैं श्रमण भगवान महावीर के पास जाकर वन्दन-नमस्कार करूँ, जाव पज्जुवासामि = और यावत् सेवा करूँ ।।9।।। भावार्थ-सुदर्शन की यह बात सुनकर माता-पिता इस प्रकार बोले-“हे पुत्र! इस नगर के बाहर अर्जुनमाली छह पुरुष और एक स्त्री इस तरह सात व्यक्तियों को नित्यप्रति मारता हुआ घूम रहा है इसलिये हे पुत्र! तुम श्रमण भगवान महावीर को वंदन करने के लिये नगर के बाहर मत निकलो । नगर के बाहर निकलने से सम्भव है तुम्हारे शरीर को कोई हानि हो जाय । इसलिये यही अच्छा है कि तुम यहीं से श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार कर लो।"
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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