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________________ {XVI} प्राप्त कर गये। शास्त्रकार की यह रचना शैली विश्व के मानव मात्र को कल्याण साधना में पूर्णरूप से प्रेरित एवं उत्साहित करती है । परिचय समवायांग में ‘“अंतकृद्दशा" का परिचय इस प्रकार मिलता है- अंतकृद्दशा में अन्तकृत आत्माओं के नगर, उद्यान, चैत्य-व्यंतरालय, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, लौकिक और पारलौकिक ऋद्धि, भोग, परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुतग्रहण, उपधान, तप, प्रतिमा, बहुत प्रकार की क्षमा, आर्जव, मार्दव, शौच और सत्य सहित 17 प्रकार का संयम, उत्तम ब्रह्मचर्य, अकिंचनता, तपः क्रिया और समिति गुप्ति तथा अप्रमाद योग, उत्तम संयम आप्त पुरुषों के स्वाध्याय ध्यान का लक्षण, चार प्रकार के कर्मक्षय करने पर केवलज्ञान की प्राप्ति, जिन्होंने संयम का पालन किया, पादोपगमन संथारा किया और जहाँ जितने भक्त का छेदन करना था वह करके अन्तकृत मुनिवर अज्ञान रूप अन्धकार से मुक्त हो सर्वश्रेष्ठ मुक्तिपद प्राप्त कर गये, ऐसे अन्यान्य वर्णन भी इसमें विस्तार के साथ कहे गए हैं । - अंतकृदशा सूत्र की परिमित वाचना एवं संख्येय अनुयोग द्वार हैं, यावत् संख्येय संग्रहणी है। अंग की अपेक्षा यह आठवाँ अंग है । इसके एक श्रुत स्कन्ध, दश अध्ययन और सात वर्ग हैं। दश उद्देशन काल और दश ही समुद्देशन काल बतलाए हैं। (समवायांग, पृष्ठ 251, हैदराबाद) - नन्दी सूत्र गत परिचय से समवायांग के इस परिचय में यह विशेषता है कि यहाँ क्षमा, आर्जव, मार्दव, शौच आदि यति धर्म का स्वरूप बताने के साथ स्वाध्याय और ध्यान का लक्षण भी बताया गया है । सम्भव है आज का 'अंतकृद्दशा' कोई भिन्न वाचना का हो। इसमें स्त्री, पुरुष, बालक और वृद्ध साधकों की कठोर साधना गायी गई है। महामुनि गजसुकुमाल के आत्मध्यान का भी वर्णन है। पर उसमें ध्यान की विशेष परिपाटी या लक्षण का पृथक् कोई उल्लेख नहीं मिलता । कदाचित् संक्षेपीकरण के समय देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण ने इसे कम कर दिया हो, अथवा प्राप्त वाचना में इसी प्रकार का पाठ हो । अध्ययन और वर्ग का परिचय भी समवायांग सूत्र में भिन्न प्रकार से है। नन्दीकार जहाँ “अंतगडदसा” का एक श्रुत स्कन्ध, आठ वर्ग और आठ ही उद्देशन काल बताते हैं, वहाँ समवायांग में एक श्रुत स्कन्ध, दस अध्याय तथा 7 वर्ग बतलाए हैं। आचार्य श्री अमोलक ऋषिजी म. सा. ने दश अध्याय का एक वर्ग और सात वर्ग, यों आठ वर्ग लिखे हैं । पर उद्देशन काल दश कहे हैं, जबकि नन्दीसूत्र में आठ उद्देशन काल बतलाए हैं। इससे प्रमाणित होता है कि समवायांग सूत्र में निर्दिष्ट 'अंतगडदसा' वर्तमान ‘अंतगडदसा’ से कोई भिन्न था। वर्तमान में उपलब्ध सूत्र ही नन्दी सूत्र में निर्दिष्ट अंतगडदसा है ।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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