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________________ { 106 [अंतगडदसासूत्र जेणेव = उतरती है, उतरकर जहाँ, कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, = कृष्ण वासुदेव थे वहाँ आती है, उवागच्छित्ता करयल जाव कट्ट = वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़कर, कण्हं वासुदेवं एवं वयासी- = कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार बोली-, इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! = हे देवानुप्रिय ! आपकी आज्ञा, अब्भणुण्णाया समाणी अरहओ = हो तो मैं अर्हन्त, अरिट्ठणेमिस्स अंतिए मुंडा जाव = नेमिनाथ के पास मुंडित होकर, पव्वयामि । (कण्हे-) = दीक्षा ग्रहण करना चाहती हूँ। (कृष्ण ने कहा-), अहासुहं देवाणुप्पिए! = हे देवानुप्रिय ! जैसे सुख हो वैसा करो।, तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबिए पुरिसे = तब कृष्ण वासुदेव ने आज्ञाकारियों को, सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- = बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा-, खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! = “हे देवानुप्रिय ! शीघ्र ही, पउमावईए देवीए महत्थं = पद्मावती महारानी के लिए बहुमूल्य, णिक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेइ, = दीक्षा महोत्सव की तैयारी करो, उवट्ठवित्ता एवं आणत्तियं पच्चप्पिणह । = तैयारी कर, इस आज्ञापूर्ति की सूचना मुझे वापस करो।” तए णं ते कोडुंबिया जाव पच्चप्पिणंति । = तब आज्ञाकारियों ने वैसा ही किया। भावार्थ-नेमिनाथ प्रभु के ऐसा कहने के बाद पद्मावतीदेवी धार्मिक श्रेष्ठ रथ पर आरूढ़ होकर द्वारिका नगरी में अपने घर आकर धार्मिक रथ से नीचे उतरी और जहाँ पर कृष्ण वासुदेव थे वहाँ आकर उनको दोनों हाथ जोड़कर कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोली "हे देवानुप्रिय ! आपकी आज्ञा हो तो मैं अर्हन्त नेमिनाथ के पास मुंडित होकर दीक्षा ग्रहण करना चाहती हूँ।" “कृष्ण ने कहा-“हे देवानुप्रिये ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो।" तब कृष्ण वासुदेव ने अपने आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार आदेश दिया-“हे देवानुप्रियों! शीघ्र ही महारानी पद्मावती के लिए दीक्षा महोत्सव की विशाल तैयारी करो और तैयारी हो जाने की मुझे वापस सूचना दो।" तब आज्ञाकारी पुरुषों ने वैसा ही किया और दीक्षा महोत्सव की तैयारी की सूचना उनको दी। सूत्र 10 मूल- तएणं से कण्हे वासुदेवे पउमावइं देवीं पट्टयं दुरुहइ दुरुहित्ता अट्ठसएणं सोवण्णकलसेणं जाव णिक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता, सव्वालंकारविभूसियं करेइ करित्ता, पुरिससहस्सवाहिणी सिवियं दुरुहावेइ दुरुहावित्ता बारवईए नयरीए मज्झं मज्झेणं णिग्गच्छइ,
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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