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________________ { 38 [आवश्यक सूत्र संसार के जितने भी पदार्थ हैं, मनुष्य को शरण नहीं दे सकते । न धन, न राज्य, न ऐश्वर्य, न सेना, न परिजन, न मित्र, न शरीर, न बुद्धि, न और कुछ । जीवन के अन्तिम क्षणों का दृश्य हमारे सामने है। उस समय कौन शरण देता है ? अनादिकाल से मोह-माया में व्याकुल जीवात्मा का यदि उद्धार हो सकता है, कल्याण हो सकता है, तो पूर्व सूत्रोक्त चार उत्तमों की शरण में आने पर ही हो सकता है। इनके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है, शरण नहीं है। इरियावहियं सुत्तं (आलोचना/ईर्यापथिक-सूत्र) मूल- इच्छाकारेणं संदिसह भगवं! इरियावहियं पडिक्कमामि इच्छं! इच्छामि पडिक्कमिउं। इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा, उत्तिंग, पणग, दग, मट्टी, मक्कडा संताणा संकमणे, जे मे जीवा विराहिया एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। संस्कृत छाया- इच्छाकार: संदिशत भगवन् ईर्यापथिकं प्रतिक्रामामि इच्छा इच्छामि प्रतिक्रमितु मैर्यापथिक्या:(क्यां) विराधनाया: (यां), गमनागमने प्राणातिक्रमणे, बीजाक्रमणे, हरिताक्रमणे, अवश्यायोत्तिङ्गपनकोदकमृत्तिकामर्कट-सन्तानसंक्रमणे ये मया जीवा विराधिता:-एकेन्द्रियाः, द्वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियाः, अभिहता:, वर्तिताः, श्लेषिताः, संघातिता:, संघट्टिताः, परितापिता:, क्लमिता:, अपद्राविताः, स्थानात्स्थानं संक्रामिता:, जीविताद्वय-परोपितास्तस्य मिथ्या मयि दुष्कृतम् ।। अन्वयार्थ-इच्छाकारेणं संदिसह भगवं! = हे भगवन् ! इच्छापूर्वक आज्ञा दीजिए, इरियावहियं पडिक्कमामि = मार्ग में आने = जाने सम्बन्धी क्रिया का प्रतिक्रमण करूँ, इच्छं = (आज्ञा मिलने पर साधक बोलता है कि) आपकी आज्ञा स्वीकार है, इच्छामि = चाहता हूँ, पडिक्कमिङ = निवृत्त होना (प्रतिक्रमण करना), इरियावहियाए = ईर्या (आने-जाने का) पथ सम्बन्धी, विराहणाए = विराधना से, गमणागमणे = जाने व आने में, पाणक्कमणे = प्राणी के दबने से, बीयक्कमणे = बीज के दबने से, हरियक्कमणे = हरी (वनस्पति) के दबने से, ओसा = ओस का पानी, उत्तिंग = कीड़ियों के बिल, पणग
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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