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________________ [आवश्यक सूत्र { 16 काउस्सग्ग पइन्ना सुत्तं (कायोत्सर्ग-प्रतिज्ञा/आत्मशुद्धि-सूत्र) मूल- तस्स उत्तरी-करणेणं, पायच्छित्त-करणेणं, विसोहि-करणेणं, विसल्ली-करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए, ठामि काउस्सग्गं। अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए, सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं, एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो जाव अरिहंताणं भगवताणं नमोक्कारेणं, न पारेमि ताव काय ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि॥ संस्कृत छाया- तस्योत्तरीकरणेन प्रायश्चित्तकरणेन विशुद्धि (विरोधी) करणेन विशल्यीकरणेन पापानां कर्मणां निर्घातनार्थे तिष्ठामि कायोत्सर्गम्, अन्यत्रोच्छ्वसितेन नि:श्वसितेन कासितेन क्षुतेन जृम्भितेन उद्गारितेन वातनिसर्गेण भ्रमल्या पित्तमूर्च्छया सूक्ष्मैः अंग संचारैः सूक्ष्मैः, श्लेष्म संचारै सूक्ष्मैः दृष्टिसंचारैः, एवमादिकैरागारैरभग्नोऽविराधितो भवतु मे कायोत्सर्गो यावदर्हतां भगवतां नमस्कारेण न पारयामि तावत्कायं स्थानेन मौनेन ध्यानेनाऽऽत्मानं व्युत्सृजामि ।। शब्दार्थ-तस्स = उस (दूषित आत्मा) को, उत्तरीकरणेणं = उत्कृष्ट (शुद्ध) बनाने के लिए, पायच्छित्तकरणेणं = प्रायश्चित्त करने के लिए, विसोहि-करणेणं = विशेष शुद्धि करने के लिए, विसल्लीकरणेणं = शल्य रहित करने के लिए, पावाणं कम्माणं = पाप कर्मों का, निग्घायणट्ठाए = नाश करने के लिए, ठामि काउस्सग्गं = कायोत्सर्ग करता हूँ अर्थात् शरीर से ममता हटाता हूँ = काया के व्यापारों का त्याग करता हूँ, अन्नत्थ = इन निम्नोक्त क्रियाओं को छोड़कर, ऊससिएणं = (ऊँचा) श्वास लेने से, नीससिएणं = (नीचा) श्वॉस छोड़ने से, खासिएणं = खाँसी आने से, छीएणं = छींक आने से, जंभाइएणं = उबासी (जम्हाई) आने से, उड्डएणं = डकार आने से, वायनिसग्गेणं = अधोवायु निकलने से, भमलीए = चक्कर आने से, पित्त-मुच्छाए = पित्त के कारण मूर्छित्त होने से, सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं = सूक्ष्म रूप से अंग हिलने से, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं = सूक्ष्म रूप से कफ का संचार होने से, सुहुमेहिं दिट्रिसंचालेहिं = सक्ष्म रूप से दृष्टि का संचार होने से अर्थात् नेत्र फड़कने से, एवमाइएहिं आगारेहिं = इस प्रकार इत्यादि आगारों से, अभग्गो अविराहिओ = अभग्न (अखण्ड) अविराधित, हुज्ज मे काउस्सग्गो
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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