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________________ षष्ठ अध्ययन - प्रत्याख्यान ] 5. साकार - जिसमें उत्सर्ग और अपवाद रूप आगार रखे जाते हैं, उसे साकार कहते हैं । 6. अनाकार-जिस तप में आगार न रखे जाएँ, उसे अनाकार कहते हैं। 7. परिमाणकृत - जिसमें दत्ति आदि का परिमाण किया जाय । 8. निरवशेष - जिसमें अशनादि का सर्वथा त्याग हो । 87} 9. संकेत - जिसमें मुट्ठी खोलने आदि का संकेत हो, जैसे- 'मैं जब तक मुट्ठी नहीं खोलूँगा तब तक मेरे प्रत्याख्यान हैं' इत्यादि । 10. अद्धा प्रत्याख्यान-मुहूर्त, पौरुषी आदि काल की अवधि के साथ किया जाने वाला प्रत्याख्यान । मूल प्रत्याख्यान - सूत्र गंठिसहियं, मुट्ठिसहियं, नमुक्कारसहियं, पोरिसियं, साड्डू-पोरिसियं, तिविहंपि चउविहंपि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अपनीअपनी धारणा प्रमाणे पच्चक्खाण, अन्नत्थ - अणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व समाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। अन्वयार्थ-गंठिसहियं = गाँठ सहित यानी जब तक गाँठ बँधी रखूँ, तब तक, मुट्ठिसहियं = मुट्ठी सहित अर्थात् जब तक मैं मुट्ठी बन्द रखूँ, तब तक, नमुक्कारसहियं = नमस्कार मन्त्र बोल कर सूर्योदय से लेकर एक मुहूर्त्त (48 मिनट) तक त्याग, पोरिसियं = एक प्रहर का त्याग, साड्ढ - पोरिसियं = डेढ़ प्रहर का त्याग, अन्नत्थणाभोगेणं (अन्नत्थ अणाभोगेणं) = निम्न आगारों को छोड़कर बिना उपयोग के कोई वस्तु सेवन की हो, सहसागारेणं = अकस्मात् जैसे पानी बरसता हो और मुख में छींटे पड़ जाये, (जैसे-छाछ बिलोते समय मुँह में छींटे पड़ जाये) महत्तरागारेणं : महापुरुषों की आज्ञा से अर्थात् गुरुजन के निमित्त से त्याग का भंग करना पड़े, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं सब प्रकार की शारीरिक, मानसिक निरोगता रहे तब तक अर्थात् शरीर में भयंकर रोग हो जाये तो दवाई आदि का आगार है, वोसिरामि = त्याग करता हूँ । = = भावार्थ-गाँठ सहित यानी जब तक गाँठ बँधी रखूँ, तब तक मुट्ठी सहित अर्थात् जब तक मैं मुट्ठी बन्द रखूँ, तब तक नमस्कार मन्त्र बोल कर सूर्योदय से लेकर एक मुहूर्त (48 मिनट) तक त्याग, एक प्रहर का त्याग, डेढ़ प्रहर का त्याग निम्न आगारों को छोड़कर बिना उपयोग के कोई वस्तु सेवन की हो, अकस्मात् जैसे पानी बरसता हो और मुख में छींटे पड़ जाये, (जैसे- छाछ बिलोते समय मुँह में छींटे पड़ जाये) महापुरुषों की आज्ञा से अर्थात् गुरुजन के निमित्त से त्याग का भंग करना पड़े, सब प्रकार की शारीरिक, मानसिक निरोगता रहे तब तक अर्थात् शरीर में भयंकर रोग हो जाये तो दवाई आदि का आगार है, त्याग करता हूँ ।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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