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________________ मूल { 86 [आवश्यक सूत्र अर्थात् हे भगवन्! प्रत्याख्यान से जीव को क्या लाभ होता है? उत्तर में प्रभु फरमाते हैं कि-"पच्चक्खाणेणं आसवदाराइं निरंभइ, पच्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ। इच्छानिरोहं गए य णं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतण्हे सीइभूए विहरइ।" प्रत्याख्यान करने से आस्रव द्वारों का निरोध होता है। प्रत्याख्यान करने से इच्छा का निरोध होता है। इच्छा का निरोध होने से जीव सभी पदार्थों में तृष्णा रहित बना हुआ परम शांति से विचरता है। प्रत्याख्यान के भेद मूलपाठ में इस प्रकार बताये हैं दसविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहाअणागयमइक्कंतं, कोडिसहियं नियंटियं चेव। सागारमणागारं, परिमाणाकडं निरवसेसं ।।1।। संकेयं चेव अद्धाए, पच्चक्खाणं भवे दसहा।। संस्कृत छाया- दशविधं प्रत्याख्यानं प्रज्ञप्तं तद्यथा-अनागतम्-(1) अतिक्रान्तम् (2) कोटिसहितं (3) नियन्त्रितं (4) चैव । साकारम् (5) अनाकारं (6) परिमाणकृतं (7) निरवशेषम्। (8) सङ्केतं (9) चैव अद्धायाः (10) प्रत्याख्यानं भवति दशधा ।। अन्वयार्थ-दसविहे = दशविध, पच्चक्खाणे = प्रत्याख्यान, अणागयं = अनागत, अइक्कंतं = अतिक्रान्त, कोडिसहियं = कोटि सहित, नियंटियं = नियन्त्रित, सागार = साकार, अणागारं = अनाकार. परिमाणकडं = परिमाणकत, निरवसेसं = निरवशेष, संकेयं = संकेत, अद्धाए = अद्धा। भावार्थ-प्रत्याख्यान दस प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं-1. अनागत 2. अतिक्रान्त 3. कोटि सहित 4. नियन्त्रित 5. साकार 6. अनाकार 7. परिमाणकृत 8. निरवशेष 9. संकेत 10. अद्धा प्रत्याख्यान। विवेचन-भविष्य में लगने वाले पापों से निवृत्त होने के लिए गुरु-साक्षी या आत्म-साक्षी से हेय वस्तु के त्याग करने को प्रत्याख्यान कहते हैं। वह दस प्रकार का है 1. अनागत-वैयावृत्त्य आदि किसी अनिवार्य कारण से, नियत समय से पहले ही तप कर लेना। 2. अतिक्रान्त-कारण वश नियत समय के बाद तप करना। 3. कोटि सहित-जिस कोटि (चतुर्थ भक्त आदि के क्रम) से तप प्रारम्भ किया, उसी से समाप्त करना। 4. नियन्त्रित-वैयावृत्त्य आदि प्रबल कारणों के हो जाने पर भी संकल्पित तप का परित्याग न करना।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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